मैं हूं तो हूं, नहीं हूं तो नहीं हूं, नहीं होकर रहना नहीं चाहता।
हूं तो जमाने तेरे लिए मैं नहीं हूं,नहीं हूं तो क्यो ढूंढना चाहता।
हिंदू-मुस्लिम हम पहले भी थे, आज यह क्या हो गया।
हम कुछ ज्यादा हिंदू हो गए, तू ज्यादा मुस्लिम हो गया।
किसी भी मजहब किसी कौम में रख लो हमें।
इंसान हूं बस इंसानियत बना रहने दो हममें।
मैं इतना एतमादी से बात करता ही रहुंगा।
ज़हर दे दो या दवा दो दो सब मंजूर है हमें।
कब्रिस्तान में कब्र खोद दो, या श्मशान में जला दो मुझे।
इन्सानियत धर्म हैं मेरा चाहे, जला दो या दफना दो मुझे।
हिंदू मुस्लिम का सारा फसाद उनका है यारों।
मां की कोख में क्या आतंकी कभी पला करते हैं।
गुंडे- मवाली बनाने पालने का काम उनका है।
कभी हिंदू- मुस्लिम भाई भाई का नारा देते हैं।
कभी मंदिर मस्जिद के नाम पर आपस में लड़ा देते हैं
गद्दी पाने को ऐ मंदिर मस्जिद की उन्माद फैलाते हैं।
इस देश के नौनिहालों को यारों आपस में लड़वाते हैं।
अपनी कुर्सी पाने को मंदिर मस्जिद की रट लगाते हैं।
धर्म का उन्माद फैला सबके जज्बातों से खेला करते हैं।
ना राम से कोई नाता है न रहीम से लेना देना है।
इनके बहकावे में आकर बेमौत हम मारे जाते हैं।
झूठ है ओठना झूठ बिछौना झूठा इनका प्यार।
ना हमसे ना तुमसे यारा ना देश से इनको प्यार।
जिसने भी फैलाया है उन्माद उस्ताद कमाल का है।
जुर्म में सजा-ए-मौत हो इन्हें,यह वक्ते तकाज़ा है।
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