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बेगुनाही का कोई गवाह नहीं

समझ जाओ जिस्म की मोहब्बत यह मुमकिन सही।
रूह की मोहब्बत समझ पाओ तेरी फितरत ही नहीं।

कितनी अनकही बातें साथ ले गया कोई।
जाते - जाते सारे खिलौने छोड़ गया कोई।

दाद देते हैं तुम्हारी नजरों को ए दोस्त।
नजरअंदाज करें और पता भी न चले।

तुम्हारी बेवफाई ने शायर मुझे बना दिया।
कागज और कलम मेरे हाथों में थमा दिया।

तुम नाराज हो कि हम क्योंकर लिखते नहीं।
हम दिल की बात किसी से कभी कहते नहीं।

बहुत अजीब है यह बंदीशे मोहब्बत भी।
आंसू बहे  नहीं इसलिए पी ली जाती है।

दर्दे दिल भी कही शायरी में सिमटता है।
बस कागज पर स्याही बिखरती जाती है।

तुमसे मिलने की खुशी मनाऊ तो मनाऊं कैसे।
जो भी मिलता है मेरा दर्द और बढ़ाकर जाता है।

झूठी हंसी ने दर्द और भी बढ़ा दिया मेरा।
हंसी में भी छुप न पाया दर्दे ए दिल मेरा।

इससे तो अच्छा था कि जी भर कर रो लिया होता।
जज्बातों से खेलने वालों से उम्मीदें वफ़ा कैसे करें ।

दर्द भी रहता है दिल में इसका
एहसास ही मुझे कब था।
इससे मुलाकात ही मेरी तब हुई
जब तू मेरे पास ना था।

नसीहत देने को तो दुनिया सामने खड़ी है।
हमें तो बिना जुर्म के सजा-ए-मौत मिली है।

कोई भी उधार लेकर जहां से जाना मुझे पसंद नहीं।
बेगुनाही का गवाह नहीं बेवफाई का दाग पसंद नहीं।

मिलेंगे ख्वाबों में वादा कर जब से तू गया।
उसके बाद रात- रात भर मैं सो नहीं पाया।
दर्द ने शायर बना दिया

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