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#हम वह पक्षी है जो उड़ने से मजबूर हैं#जब तलक हम जाति धर्म के जंजीरों में कैद हैं#

जब तलक हम जाति धर्म के जंजीरों में कैद है।
हम वो पक्षी है जो पंख रहते उड़ने से मजबूर हैं।

आप अपने आपको एक दीपक बनाकर देखिए।
पिंजरे के पक्षी को आसमान में उड़ा कर देखिए।

लोग मदद को आएंगे रास्ता तलाशने के बाद।
अंधेरे सारे भागेंगे एक दीपक जलाने के बाद।

सूरज को न बुलाइए अंधेरा छा जाने के बाद।
रोशनी चाहिए तो खुद दीपक बन जल जाइए।

लोहे से गर्म होकर विजय श्री कभी मिलती नहीं।
यह खुद को पहले, बाद में औरों को समझाइए।


एक दीपक ही बहुत है अंधेरा भगाने के लिए।
दीप बनकर जल जाइए रोशनी लाने के लिए।

विषधरो वाले संस्कारों को अपनी छोड़कर।
प्यार मोहब्बत से सबको जीतकर दिखलाइए।

मन बेचैन है गम में डूबा शहर देखकर।
हर ओर फैली तबाही का मंजर देख कर।

कैसे इस हाल में भी मुस्कुराते हैं आप।
सब हैरान हैं आपका यह हुनर देखकर।

प्यार और दोस्ती के सभी है झूठे दावे यहां।
शैतानो का आदमी होने का है दिखावा यहां।

चरित्र पर चढ़ा मिलता है आवरण मखमली।
आचरण में उनके कुकर्मों की है भरी पोटली।
खुद को दीपक बनाकर देखिए

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