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ना जाने क्या छप जाए

ना जाने क्या छप जाए कल अखबार में।
बस एक हादसा हुआ है बीच बाजार में।

ना जाने कौन सा हो मेरा आखरी सफर।
सांसे रुक जाएगी ना जाने किस डगर।

गम मिली या मिली खुशी सीने से लगाया हमने।
तेरे हर एक  तोहफे को दिल में छुपाया है हमने।
अखबार में

राजा, महाराजा, बादशाहो के ताज ना देखे हमने।
वक्त की मार से पुरानी दरख़्त टूटते देखा है हमने।

दूर - दूर तक रास्ता नहीं दिखता।
आंधियों का गुब्बार देखा है हमने।

शिकारी को भी तो शिकार होते देखा है।
हर चेहरा पर चढ़ा नकाब देखा है हमने।

शुक्रिया जो आपने हमें इतने गम दिए।
देने को और क्या था आपके अधिकार में।

पढ़ लीजिएगा कल के अखबार में।
एक बंदा रहा न घर के न घाट के।

आधी कट गई तो उम्र पूरी भी कट जाएगी।
मिलने की चाह मौत के बाद भी रह जाएगी।

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