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#जानबूझकर किया गया या फिर यह मात्र विडंबना है#

जानबूझकर किया गया या फिर यह मात्र विडंमना है।
पुरुषों की भोग वस्तु होती बस केवल वाला है।

पगड़ी, टोपी, कमीज, पतलून या फिर दौलत, शोहरत हो।
उन्नति, नौकरी, अय्याशी या फिर भूख, प्यास की सामग्री हो।

अय्याशी, आशिकी, दीवानगी, खुशबू, शक्ति सब में आती हो।
मौत, कयामत, लानत, किस्मत, मजबूर तुम समझी जाती हो।

कालिख, तौहीन, समस्या, चुगली, मायूसी, जूती, खाती हो।
समय कभी नहीं होता तेरा, बस युग, वर्ष, मास, बदलता है।

दिन, प्रहर, घंटा, मिनट न तेरा, पल, क्षण में अकुलाती हो।
भूत, भविष्य, वर्तमान पर, नाम न तेरा वसुंधरा कहलाती हो।

माना पढ़ाई, लिखाई किताब कॉपी या कलम दवात स्याही हो।
क्या नतीजा हो या, प्रमाण पत्र का सेहरा पहन, तुम पाई हो।

भूत, वर्तमान, भविष्य पुरुष हैं नारी तुम कहलाई हो।
दृष्टिकोण में दृष्टि भले तुम कोण सदा पुरुष के साथ है।

मौत, कयामत, लानत, तौहीन तोहमत तेरी बहनों की टोली है।
नफरत, मजबूरी, विदाई, जुदाई, तनहाई सब तेरी हमजोली है।

महिला दिवस मुबारक तुमको नारी बन कर आई हो।
हब्बा की बेटी आदम की हमदम संसार बसाने आई हो।
जानबूझ कर दिया गया

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