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डर गई अपनी परछाई से

ऐसा पहली बार हुआ मैं डर गई अपनी परछाई से।
जब देखा खेलते उनको खिलौने छोड़ जज्बातों से।

दर्द से डरती नहीं हूं डरती जख्म नई एक खाने से।
कितनी अनकही बाते लेकर चली जाऊंगी जमाने से।

लोग कहते हैं खाली हाथ चला गया जाने वाला।
लोगों को खाली हाथ दिखेगा मेरे चले जाने से।

मेरे दर्दे दिल का एहसास क्या होगा मेरे जाने से।
होता है कितना दर्द सखा अपनो से धोखा खाने से।

तू भी ख्याल मिटा न सकेगा अपने जेहन के खजाने से।
मेरी हिमाकत शमा जलाकर रख दिया तेरी हिफाजत में।

अब न रहे मय न वो मयकदे आंखों से पिलाने वाले।
इस माहौल में कैसे कोई जाम पीकर नबाब हो जाए।

इस माहौल का इल्जाम खुदा पर लगाने वालों।
चाक गिरेबा हैं तेरे मगरूरी से सजदा करने वालों।

मिल जाएंगे हजारों यहां नसीहत देने समझाने वाले।
मिलेंगे नहीं हादसों के गवाह तबाही से बचाने वाले।

लाशों की ढेर पर जी भर कर रोने वाले।
गरीबों के शव पर मगरमच्छी आंसू बहाने वाले।
आंसूओं की तिजारत कर शोहरत कमाने वाले।

मैं सजदा करूं या जप- तप का सहारा ले मनाऊं तुझे।
तुम ही बताओ मेरे उम्मीदे वफ़ा कैसे अब रिझाऊं तुझे।

दिल रोता बहुत मेरा जब मेरा राजदा मेरे पास नहीं होता।
शायरी बस शायरी है, इसमें दिल का दर्द बंया नहीं होता।
दिल का दर्द बंया नहीं होता

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