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#ना जाने क्यों हम थकने लगे हैं#

ना जाने क्यों हम थकने लगे है।
चलते थे जो पांव मेरे साथ मीलो।
बैठे-बैठे भी अब दुखने लगे हैं।

दिलो-दिमाग में जो थी छवि तुम्हारी।
पहले धुधली हुई अब मिटने लगे हैं।
हकीकत यह है कि हम टूटने लगे हैं।

ताश के पत्तों से बनाए थे महल जो।
नदी की तेज धार में वो बहने लगे हैं।
सपने भी बेवफाई करने लगे हैं।

आंखों से दूर होकर भी दिल के करीब था जो।
दिल के रस्ते गाहे-बगाहे देख लिया करो।
कल तक जो आशियाना था आज कब्र शाला है।
गुजरों उधर से तो मुमबत्तिया जला दिया करो
बैठे-बैठे भी थकने लगे हैं

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