ना जाने क्यों हम थकने लगे हैं।
अपनी परछाई से भी डरने लगे हैं।
नफ़रत से डरते थे अब प्यार से डरने लगे हैं।
भाई समझ बैठा पीठ पर खंजर मेरे लगें हैं।
फिर से अब एकलव्य के अंगूठे कटने लगे हैं।
गुरु अपने स्वार्थ हेतू शिष्य को ठगने लगे हैं।
कोरोना बस एक बहाना बन कर रह गया है।
अपने को छूपाने को सब मुखौटे पहनने लगें हैं।
जब तक धरा पर धृतराष्ट्र पैदा लेते रहेंगे।
पुत्र मोह में तेजस्वी सदा जंगल में फिरेंगे।
अनपढ़ गंवार बाप दादो के नाम पर यू दादागिरी चलाएगा।
राजपूत सुशांत हर क्षेत्र में सिंह होकर धोखे से मारा जाएगा।
अपनी परछाई से भी डरने लगे हैं।
नफ़रत से डरते थे अब प्यार से डरने लगे हैं।
भाई समझ बैठा पीठ पर खंजर मेरे लगें हैं।
फिर से अब एकलव्य के अंगूठे कटने लगे हैं।
गुरु अपने स्वार्थ हेतू शिष्य को ठगने लगे हैं।
कोरोना बस एक बहाना बन कर रह गया है।
अपने को छूपाने को सब मुखौटे पहनने लगें हैं।
जब तक धरा पर धृतराष्ट्र पैदा लेते रहेंगे।
पुत्र मोह में तेजस्वी सदा जंगल में फिरेंगे।
अनपढ़ गंवार बाप दादो के नाम पर यू दादागिरी चलाएगा।
राजपूत सुशांत हर क्षेत्र में सिंह होकर धोखे से मारा जाएगा।
कब तक द्रोपदी का दोषी केवल दुर्योधन को माना जाएगा।
कहो पार्थ क्या दोषियों में, पांचों पांडवों का नाम ना आएगा।
भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य,विदूर जैसे आचार्य जब- जब दर्शक बन रह जाएंगे।
हारे हुए युधिष्ठिर का द्रोपदी को हारना भी उचित ठहराएंगे।
लाख कोशिशों के बाद भी पार्थ आप महाभारत रोक ना पाएंगे।
कहो पार्थ क्या दोषियों में, पांचों पांडवों का नाम ना आएगा।
भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य,विदूर जैसे आचार्य जब- जब दर्शक बन रह जाएंगे।
हारे हुए युधिष्ठिर का द्रोपदी को हारना भी उचित ठहराएंगे।
लाख कोशिशों के बाद भी पार्थ आप महाभारत रोक ना पाएंगे।
कब तक हमारे बच्चों को तीरंगे में लपेटकर लाओगे।
हमारे देश के पैसों से हमारे ही बच्चों को मरवाओगे।
हमारे देश के पैसों से हमारे ही बच्चों को मरवाओगे।
बंद करो विदेशी कल कारखाने हम गृह उद्योग से काम चला लेंगे।
नहीं चाहिए ब्रांडेड, हम धोती - लूंगी में जीवन बिता लेंगे।
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