बरस जाती थी तू अब चुप सी है।
ज़िन्दगी तू भी मेरी हमदम सी है।
लफ्जों की जरूरत ही नही मुझको।
जिंदगी अब तुमको समझने लगी हूं।
जमाने के शोर से डर लगता है मुझको।
खामोशियों के साथ जबसे रहने लगी हूं
रातों को जागना छोड़ दिया जबसे मैंने। ख्वावो में जबरदस्त मैं सोने लगी हूं।
अब ना हो चाहे कोई हम सफर मेरा।
मैं अकेले ही सफर में चलने लगी हूं।
बदलते जमाने की तस्वीर देख कर।
मैं भी अपने आप को बदलने लगी हूं।
मुझे मुहब्बत थी शायद तुमसे।
जाने के बाद तेरा ख्याल आया।
महफ़िल में अपनी निगाहो को,
तुमको तलाशते हर ओर पाया।
खुदा की इबादत में भी दिल को,
तेरी ओर जाते हुए पाया।
जाने से तेरे बहार के दिन को,
हमने पतझड़ सा पाया।
जिसने भेजा जहां में हमको,
उसका बुलावा अब तक न आया।
ज़िन्दगी तू भी मेरी हमदम सी है।
लफ्जों की जरूरत ही नही मुझको।
जिंदगी अब तुमको समझने लगी हूं।
जमाने के शोर से डर लगता है मुझको।
खामोशियों के साथ जबसे रहने लगी हूं
रातों को जागना छोड़ दिया जबसे मैंने। ख्वावो में जबरदस्त मैं सोने लगी हूं।
अब ना हो चाहे कोई हम सफर मेरा।
मैं अकेले ही सफर में चलने लगी हूं।
बदलते जमाने की तस्वीर देख कर।
मैं भी अपने आप को बदलने लगी हूं।
मुझे मुहब्बत थी शायद तुमसे।
जाने के बाद तेरा ख्याल आया।
महफ़िल में अपनी निगाहो को,
तुमको तलाशते हर ओर पाया।
खुदा की इबादत में भी दिल को,
तेरी ओर जाते हुए पाया।
जाने से तेरे बहार के दिन को,
हमने पतझड़ सा पाया।
जिसने भेजा जहां में हमको,
उसका बुलावा अब तक न आया।
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