इंसान के कद्र करने की फिदरत देखो।
एक पाने से पहले एक खोने के बाद।
खुद से ज्यादा जिन पर एतबार किया।
वहीं पूछ रहे आज क्या मैंने प्यार किया
जिसके कहने पर गुज़ार दी तमाम उम्र
उसने ही बेफिक्री का इल्ज़ाम लगाया।
जिंदगी में कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है कुछ फर्ज चुकाना बाकी है।
कर्ज और फर्ज के बीच सामंजस्य बैठाना बाकी है।
मिटे दर्द का निशान मिटाना बाकी है दर्द दास्तां सुनाना बाकी है।
कुछ पुराने दर्द मिटाना बाकी है नई जख्म पाना बाकी है।
रुठे रिश्तेदारों मनाना बाकी है रोते को हंसाना भी तो बाकी है।
कुछ सपने टूटे- फ़ूटे हैं कुछ ख्वाहिशे भी तो अधूरी है।
टूटे सपनों को चुन- चुन कर मुझे अब भी दफनाना बाकी है।
रिश्ते जो बन कर टूट गए उनमें गांठ लगाना बाकी है।
उससे बिछड़ कर मैं जी पाउंगी नहीं उसको समझाना बाकी है।
मुझसे बिछड़कर जी पाएगा वह भ्रम उसका मिटाना बाकी है।
एक पाने से पहले एक खोने के बाद।
खुद से ज्यादा जिन पर एतबार किया।
वहीं पूछ रहे आज क्या मैंने प्यार किया
जिसके कहने पर गुज़ार दी तमाम उम्र
उसने ही बेफिक्री का इल्ज़ाम लगाया।
जिंदगी में कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है कुछ फर्ज चुकाना बाकी है।
कर्ज और फर्ज के बीच सामंजस्य बैठाना बाकी है।
मिटे दर्द का निशान मिटाना बाकी है दर्द दास्तां सुनाना बाकी है।
कुछ पुराने दर्द मिटाना बाकी है नई जख्म पाना बाकी है।
रुठे रिश्तेदारों मनाना बाकी है रोते को हंसाना भी तो बाकी है।
कुछ सपने टूटे- फ़ूटे हैं कुछ ख्वाहिशे भी तो अधूरी है।
टूटे सपनों को चुन- चुन कर मुझे अब भी दफनाना बाकी है।
रिश्ते जो बन कर टूट गए उनमें गांठ लगाना बाकी है।
उससे बिछड़ कर मैं जी पाउंगी नहीं उसको समझाना बाकी है।
मुझसे बिछड़कर जी पाएगा वह भ्रम उसका मिटाना बाकी है।
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