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करोणा तेरे डर से घर से निकलना मुहाल है

करोना तेरे डर से घर से निकलना मुहाल है।
फुर्सत ना मिली थी देखें जिंदगी इतनी कमाल है।

सड़कों को मिली राहत जो बरसों से उसकी मुराद थी।
घर को मिली खोई चहल पहल जो उसकी तलाश थी।

प्रकृति तेरे रूठने की वजह क्या थी तु गजब ढा गई।
आदमी - आदमी के बीच भावनात्मक दूरी बना गई।

हर शख्स अपने आप को खुदा समझ बैठा था।
ऐसे में मगरूर इंसान का घमंड टूटना भी जरूरी था।

तू जाए तो जिंदगी को राहत सड़कों को रौनक मिले।
तुझे मनाने की चाह में कई देशआपस
में लड़ पड़े।
इंसान अकेला रह जाता है

वो लोग जो औरों के घाव भर कर अधरों को खुशियां देते हैं।
भावनाओं के दलदल में धंस हर बार अकेला रह जाते हैं।

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