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परिंदे जानते हैं कौन कितना ईमान रखता है

नदी के किनारों जैसी है ए जिंदगी
एक तरफ ख्वाहिशों का है बंन्डल ।
दूसरी तरफ ख्वाहिशों का है जनाजा।

सांस तोड़ देती है सारी मेरी ख्वाहिशें तड़पते ।
जब नज़र आती है अंतहीन मेरी मुसीबते।

जहांपनाह गुजारिश है मुझे मुकम्मल जिंदगी दी जाए।
या फिर मुझ जैसों की एक अलग ही बस्ती बसाई जाए।

रेड जोन में भोज खाना भी छोड़ दिया चील कौओं ने।
रेड जोन में भोज खाकर लौटा जब चील कौवे ने।
चोच सेनीटाइज कर खुदको कर लिया क्वारटाइन कौवे ने।

परिंदे जानते हैं कौन कितना ईमान रखता है।
कौन मेरे लिए बंदूक तो कौन अनाज रखता है।
हम बेजुबान हैं तू तो इन्सान का दिल और दिमाग रखता है।
कौन बंदूक दुकान मेरे लिए अनाज रखता है

हर शख्स क्य़ो छुपाकर दूसरे के बर्बादी का सामान रखता है।

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