जाने कैसे लोग हैं जो अपनों की जान लेते हैं।
हम हैं जो दोस्त क्या दुश्मनों की परवाह करते हैं।
कैसा रचयिता है ऐसा किस्मत जो रचता है।
हर एक ख्वाहिश सांसो पर भारी पड़ता है।
सांसे कम होती जाती है ख्वाइशे बढ़ती जाती है।
सांसे खत्म होने पर भी ख्वाहिशे रह ही जाती है।
मुकद्दर की किताब में न लिखी चाहे उतनी सांसे हो।
सजाते ख्वाब रहो बची जब तलक एक भी सांसे हो।
मोहब्बत पर जिनको अपने एतवार होता है।
मुझे कब और कहां किसी से खूब होता है।
अपनी गजलों में महबूब को बसाने वाले को।
वाहवाही कि नहीं इश्क का फिक्र होता है।
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