आप मेरे करीब थे मैं भी आपके करीब था।
पीठ से मिले थे पीठ ऐसा अपना नसीब था।
आप आए ना नज़र तो क्या नज़रों का कसूर था।
फसल सारे जलकर राख हो गए।
बारिश अब आने से क्या फायदा।
उम्र भर जो चिथड़े से गुज़ारा किए।
क़ब्र में रेशमी उढ़ाने से क्या फायदा।
दाने दाने को जो औरों के मुहताज थे।
मरने पर निकले लौट्री से क्या फायदा।
जीते जी मां को दो बचन ना कहा प्यार से।
संगमरमर का कब्रगाह बनाने से क्या फायदा।
मां के दूध का कर्ज भी ना उतारे गए जिनसे।
ऐसे लोगों को जन्नत में जाने से क्या फायदा।
बूढ़े अब्बू का जो ना कभी सहारा बने।
उनके उपनाम लगाने से क्या फायदा।
इज्जत आबरू का जो ना रखवाला बने।
माथे लगें ऐसे सिंदूर का क्या फायदा।
पोथी पढ़-पढ़ भले ना आचार्य बने।
चारों वेदों को पढ़कर ना ज्ञानी बने।
जननी जन्मभूमि का जो आभारी बने।
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क़ब्र में रेशमी उढ़ाने से क्या फायदा |
ऐसे ही पुत्रों से ही धरती को है फायदा।
जो ज्ञानी व्यभिचारी नहीं संस्कारी बने।
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