जिंदगी के हर मुकाम पर दिल धड़कता रहा पूछता रहा।
ससुराल मिला तो मां पिता सहेली पाला तोता छुटता रहा।
प्यार अपनापन अधिकार अक्खड़पन सब मैके में छुटता रहा।
नौकरी मिली पैसे मिले दिल ने कहा सब कुछ तो तू पाता रहा।
मन से आवाज आई मनपसंद खाना पकाना पौधा लगाना छुटता रहा।
आया का पाला बच्चा उसके हाथों की बनी रोटी खाता रहा।
बड़ी गाड़ी बंगले देख दोस्तों की बधाईयां मिलता रहा।
मन पीछे छूटे टपकते घर और टूटी साईकिल ढूंढता रहा।
बच्चा पढ़कर विदेश गया जाकर सैटल वहीं हो रहा।
टूटे खिलौने वाकर पौटी सब मैं सम्भाल कर रखता रहा।
साठ वर्ष होते ही सेवानिवृत्त आकर द्वार पर खड़ी रही।
संगी साथी आफिस फाईल चाय नींबू वाला छुटता रहा।
तीन महीने के वीजा पर पोते नाती से जाकर मिलता रहा।
हर बार लौटते समय दिल चटक चटक कर टूटता रहा।
श्मशान जाते हुए दिल ने फिर कहा सब कुछ जोड़ता रहा।
साथ चंद लकड़ियां एक कफ़न में लिपटा बस तू रहा।
खुश नहीं लगता है जाते जाते क्या कुछ करना रह गया।
गैरों को गले लगाना गांव में बूढ़ी मां का पैर दबाना रह गया।
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