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जो दिखता था वह वैसा कहां था

आसमान जमीं से मिलता दिखता था,

आंखों का भ्रम था सच में कहां था।

उनसे मेरी मुहब्बत कमाल की थी,

मिलना उसका क़िस्मत में कहां था।

जिसके लिए बहते रहे मेरे आंसू 

वह ना यहां था नहीं वह वहां था।

चलता रहा उम्र भर साथ जिसके,

खो जाएगा ऐसा लगता कहां था।

गलतफहमी से जुदा हो गए हम यारों,

 फिदरत का बुरा कोई हममें कहां था।





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