दिल में कोई हूक उठे कलम उठती है।
सुनने वाला न हो कागज़ सुन लेती है।
जज़्बात जब उलझे कुछ लिख देती हूं।
सपने टूटने पर उसकी चुभन लिख देती हूं।
कागज़ का नहीं होना भी मुझे नहीं अखरता है।
अपनी हथेली पर जज़्बातो की घुटन लिख देती हूं।
लिखकर दिलोदिमाग का संतुलन बरकरार रखती हूं।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे या गिरजाघर से गुजरते वक्त।
कलम की धार कायम रखने की बस दुआं मांगती हूं।
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