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पैरों में पड़ी जंजीर मुझे रोकती रही

पैरों में पड़ी जंजीर

बिन बुलाए आ जाती मगर 
जाने क्या सोचकर मैं वहां ही ठहरी रही।

शायद कोई उम्मीद थी तेरे जाने के बाद 

दरवाजे को मैं यूं ही सारी रात तकते रही।

लौट आई पुरानी यादें जिसे मैं भूलती रहीं।

तू नहीं आएगा लौटकर कभी जानती थी।

फिर भी तमाम उम्र तेरा इंतजार करती रही।

जाने क्या सोचकर मैं वहां ही ठहरी रही।

कई सवालों के झंझावातों से लड़ती रही।

रिश्ता बचाने को झूठे इल्ज़ाम भी सर ले लिया।

दूरियां फिर भी हमारे दरम्यान बढ़ती रही।

बगैर बुलाए भी मैं आ जाती मगर

पैरों में पड़ी जंजीर मुझे रोकती रही।

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