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इंकार नहीं करते Hold पर रखते

भावनाएं बिमार है या मर चुकी है 

हम वहीं है वक्त बदलता रहा 


आप से तुम,तुम के बाद फिर से आप।

यह सिलसिला यूं ही चलता रहा।

हम वहीं हैं वक्त बदलता रहा।

कभी ओ के गुड नाईट के बाद

भी घंटो बातें करना चलता रहा।

अनवरत चलने वाली बातें रुक सी गई।

समय परिवर्तनशील है सभी जानते हैं। 

समयाभाव में अब सुप्रभात भी नहीं है।

इसका सीधा संबंध मन की भावना से है।

दिन और रात 24 घंटे के अभी भी होते हैं।

जिम्मेदारियां पहले भी थी आज भी है।

डाटा पहले खर्च होते थे आज भी होते हैं।

जब मोबाइल नहीं था चिट्ठियों का जमाना था।

घंटो लग जाया करते थे इक खत लिखने में।

पढ़ने वाले महीनों सालों तक पढ़ा करते थे।

आज 

पलक झपकते हम बात कर सकते हैं।

कहीं न कहीं भावनाएं आहत हुई हैं।

भावनाएं बिमार है या तो मर चुकी है।

समय को दोषी ठहरा कर हम बच लेते हैं।

इन्कार नहीं करते ऐ Hold पर रख लेते हैं।

सुविधानुसार तुम से आप,आप से तुम कर लेते हैं।

ऐसे में कोई कहा तक टूटता है सोचते ही नहीं।

किसी के भावनाओं की कद्र करना जानते ही नहीं।

सच्चाई है ऐ अपने को दोषी कभी मानते ही नहीं।

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