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उनके जबाब में मेरे पर इल्ज़ाम था

 कब? कौन? कितना?


मेरा एक ही सवाल था ?

तड़ीपार कर दी आपने 


दोनों का एक ही जवाब।


बहुत .....


एक का बहुतों में एक मैं।

तो, 

दूसरे का एक के कारण बहुत।


तेरे जबाब तो सीधे-साधे बहुत थे।

उनके जबाब में इल्जाम बहुत था।


बहुतों में एक होना भी जरूरी था।

पूछने वाले पर दोष लगाना भी जरूरी था।


सवाल ने मुझे ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

दोनों जीत गए प्रश्नकर्ता को सजा दिला दिया।

मैं कारागार में बंद सोच रही क्या मेरे सवाल ग़लत थे?


कैसे गलती कर लोग वरी हो जाते,

सवाल उठाने वाले को दोषी बनाते।


क्या यही है हमारी न्याय- व्यवस्था ।

वकील ही मुजरिम के साथ हो जाते।

वकील के दलील से निर्दोष फांसी चढ़ जाते।

न्याय के तराजू पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हैं?

प्रश्न मेरा अकेले का नही बहुतों का था।

यह और बात है सवाल खड़ा मैंने की थी।

छोड़ो कहां फरियाद लेकर जाए सजा सुना दो।

आदत सी हो गई है वगैर गलती सजा याफ़्ता होने की।

इतनी बड़ी सजा मिलेगी सोचा ना था तड़ीपार कर दी।



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