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यह मत पूछना क्यों?

 

तुमको तुमसे ज्यादा जानता हूं पागल 

कसम दिला दी तो तुम्हें बताना हीं पड़ेगा मेरे लाख मना करने पर भी घर वाले ने मेरी शादी करने की ज़िद ठान ली। मां के अनुनय विनय के बाद मैं अपने हथियार डाल दिए। मैंने हामी कर दी लेकिन दिल में चैन नहीं आ रहा था।

सोचा एक बार पहले तुम से मिल लूं, लेकिन कैसे ? 

हां मैंने गलत कहा था तुम्हें तो पता था मेरी कोई बहन नहीं लेकिन सभी को ऐ बात पता नहीं थी, सो मुझे झूठ का सहारा लेना पड़ा। बहन की शादी के लिए लड़का देखना है इसलिए आया हूं यह बताना पड़ा


तुमसे मिलना जरूरी लग रहा था मुझे । मैं देखना चाहता था तुम कैसे रह रही हो। मुझे एक चिंता लगी रहती थी न जाने तुम कैसे रहती होगी ?


तुमने जब मुझे देखा तुम्हारे चेहरे पर विस्मित का भाव था, होना भी चाहिए। यह कल्पना के बाहर की बात थी, तुमने सोचा नहीं होगा कि मैं कभी यहां तुमसे मिलने आऊंगा। 


मैं तीन-चार दिन तुम्हारे घर पर ठहरा । चाहता तो एक-दो दिन में ही चला जाता लेकिन मैं पूरी तरह से आस्वस्त होना चाहता था तुम खुश हो। 


जब बहाना बनाई है तो बाहर जाकर उसे सही भी साबित करना होगा। मुझे याद है कि मैं शाम के समय यह कह कर बाहर निकला लड़के वाले के यहां जा रहा हूं। 


ना कोई लड़का वाला था,ना कोई लड़का था अब मैं जाता तो कहां जाता ? मैं मार्केट में यहां से वहां घूमता रहा। मार्केट में शराब की दुकान भी दिखाई दे रही थी। तुम तो जानती हो कि मैं शराब पीना शुरू कर चुका हूं। 

अब तेरे सामने शराब पीकर तेरे घर में जाऊ यह तो हो नहीं सकता था।

एक चाय की दुकान में बैठकर चाय पी और फिर वापस आ गया। आने पर जो सवाल तुम दोनो ने किए बहुत संभलकर मैं जबाब देता रहा।


मेरे लिए बहुत बड़ी परीक्षा की घड़ी थी। दिन में तुम और मैं अकेले रहते थे। सामने तुम मैं तुम्हें देख सकता था छू नहीं सकता था।

तुम मेरे पसंद का खाना बनाती बीच-बीच में आकर गप्पे मारती। मैं बस तुम्हारी बातों से तुम्हारे खुशी का परसेंटेज समझने की कोशिश करता। 


कहते हैं खुशी के पल जल्द निकल जाते हैं। मेरे पास तेरे साथ होने की खुशी थी। तुमको समझने में मुझे हमेशा से परेशानी रही है। सच कहूं मैं समझ नहीं पाया मुझे देखकर तुमको खुशी हुई या नहीं।

मैं एक दो दिन और रुक जाता लेकिन कोई रुकने को कहे तो मन में सोचता। 

जिस काम के लिए आया था (लड़का देखना) वह हो गया आज शाम में चला जाउंगा। 

तुम एकदम से चौंक उठी जैसे मैंने कोई अनहोनी बातें

तुम कैसी हो एकबार देखना चाहता था


कह दिया। अरे ऐसे कैसे ? कल सबेरे चले जाना सबेरे ऐ गाड़ी से स्टेशन छोड़ आएंगे। 

मैं तुम्हारी बातों को काटते हुए बोला नहीं मैं चला जाऊंगा क्यों उन्हें परेशान करोगी, फिर तुम चुप हो गई।

खाना खाते समय बाकी दिनों की अपेक्षा हमने ढेरों पुरानी बातें की ।

तुम ने कहा भी थोड़ा सो जाओ लेकिन मुझे एक भी पल बिगाड़ने नहीं थे। जानता था शायद अपनी जिंदगी में यह समय फिर से ना मिले।

सूर्य ढलने के साथ हमारे बिछड़ने का समय आ गया। मैं चला हमारे पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं, तुम भी चुप। चुप्पी तोड़ते हुए तुमने कहा - ठीक से जाना और तुम्हारी रुंधे गले ने बहुत कुछ कह दिया था। मैं तुमको तुमसे थोड़ा ज्यादा जानता हूं मेरे जाने के बाद तुम कितना रोई होगी। 

एक बार सोचा भी था तुमको अपनी शादी के बारे में बताऊं लेकिन पागल मैं तुमको नहीं बता सका। अब यह मत पूछना क्यों ?

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