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तुमको ढ़ूंढती रही मैं तेरी तस्वीर में |
तुमसे ना कोई रिश्ता था ना कोई बंधन।
एक एहसास था जिसको हम जी रहे थे।
सुना है इन्सान ख्वाहिशों से भरा परिंदा है।
नाउम्मीदी से घायल उम्मीदो से ही जिंदा है।
ना था कोई रिश्ता ना कोई बंधन था।
ख्वाहिश भी ना था तुम को पाने का।
रहता था इंतज़ार बस ख्वाबों में आने का।
जिंदगी हर मोड़ पर आजमाती रही।
मेरे हारने का जश्न तुम मनाती रही।
एहसास तेरा होने का भ्रम दिलाती रही।
तेरी यादें हमेशा मेरे मौत से टकराती रही।
तुमको ढ़ूंढती रही मैं तेरी तस्वीरों में,
मेरा अस्तित्व खोता रहा तेरे गुरूर में।
याद तेरी बह जाए ना कहीं सैलाब में,
समझाया बहुत दिल ने मेरे आंखों को।
आंख बंद रखा मगर आंसू बहती रही।
चाहत थी या मुहब्बत का जुनून था,
पास ना रहते हुए भी तू कहां दूर था।
महसूस होता रहा फिर भी तुमको खोने दिया।
अपने एहसास को जिंदा रखा ना मैंने मरने दिया।
बड़ी हसरत थी तुझे देखूं अपने आंखों के आईने में।
जाने कैसी दिखती होगी तेरी तस्वीर मेरी आईने में।
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