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Dard ko sahan nahi kar pata hu

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क्या से क्या हो गया 😭

अरावली की चोटी से  

अविरल गिरते हैं आँसू,  

हर कटे वृक्ष के साथ  

मेरा हृदय भी टूटता है।

जैसे-जैसे वृक्ष कट रहे, टूट रहे हैं हम।


धरती की साँसें भारी हैं,  

पक्षियों की पुकार है मौन,  

और बैचैन तड़पता मैं—और—मेरा--मन 

खुद को अपनी जड़ों से बंधा पाता हूं ,

इस दर्द को सहन नहीं कर पाता हूं।  


रेत की लहरें देखो बढ़ चलीं है,  

देखो हरियाली अब सिसक रही,

हवा की कमी भी हमें खल रही है।

धरती मां की छाती पर खंजर चल रही,  

लोभियो की तलवारें वृक्ष पर चल रही।  


अरावली की पहाड़िया पुकार रही---

ओ गार्डेनर, ओ पर्यावरण प्रेमी मानव,


मुझसे ही तेरी साँसों में जीवन है समझा रही,  

बचा ले मुझको अरावली का यही आह्वान है।  


कोरोना में जो खो गया, उसका ना तू मलाल कर,

आगे आने वाले जेनरेशन का तो कुछ ख्याल कर।


जो खो गया उसे भूल जा,  

पर जो बचा है उसे सँभाल ले,  

अरावली की हर धड़कन में  

अपना मन प्राण तू डाल दे।


पेड़ों की छाँव तले फिर से नए गीत गूँजेंगे,  

पक्षियों की उड़ान में फिर से सपने जुड़ेंगे।


अरावली की छाया तले तेरे वंशज खेलेंगे।

हरी भरी धरती होगी निरोगी उनके तन-मन।

पच्चीस के जाते-जाते यही दुआ करते हैं हम।

हरी-भरी रहे धरती मेरे बच्चे दुआ करते हैं हम।

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