मूलमंत्र है- मैं हूं ना
सच्चा प्यार हो या रिश्ता कभी धुंधला नहीं पड़ता है, वह बढ़ता जाता है। जब भी कोई एक कमजोर पड़ता है, तो दूसरा उठकर खड़ा होता है, रिश्ते को संभालने के लिए।
वो भी इसलिए क्योंकि वो करना चाहता है, कोई जोर जबरदस्ती नहीं, यही है सच्चे प्यार में बिना कहे निभाया जाने वाला वादा, एक ऐसा वादा जो किया भी नहीं गया हो।
रिश्तों की खासियत है यहां कोई गणित नहीं होता ना ही कोई सौदा। रिश्ते में लाभ-हानि, फायदा -नुकसान या कितना पाया कितना खोया आ जाएं तो वह टूट कर बिखरने लगता है।
रिश्ते का मतलब सब कुछ बराबर-बराबर बाँटा जाए, हर दिन दोनों लोग बिल्कुल एक जैसी मेहनत करें, एक जैसा प्यार दिखाएं जरूरी नहीं।
ज़िंदगी ऐसे हीं चलती, और प्यार भी ऐसे ही चलता है। कौन कितना दें रहा कितना पा रहा तो व्यापार है।
कभी-कभी ऐसा होता जब एक इंसान थका होता है, उलझा हुआ होता है ,शायद काम से परेशान या फिर अपने आप से, निजी दुख से जूझ रहा होता हो या फिर बस भविष्य की सोचों में खोया हुआ होता है।
ऐसे समय में, दूसरा इंसान आगे बढ़ता है। वगैर कुछ कहें बिना कुछ पूछे।
वह नहीं सोचता आज मैं इसके साथ हूं क्या कल यह भी मेरे साथ खड़ा रहेगा क्या ? आज़ ऐसे संबंध कम दिखाई दे रहे, जिसमें वगैर किसी चाहत के इंसान किसी भी रिश्ते को अहमियत दें।
सच्चे रिश्ते या प्यार में वह इंसान वही करता है जो ज़रूरी होता है जिम्मेदारी उठा लेता है। वह जानता है उसके प्यार को अभी उसकी जरूरत है।
प्यार में कभी भी हिसाब- किताब करना मुनासिब नहीं होता।
ना ही ये देखना कि सब कुछ हमेशा दोनों तरफ बराबर का प्यार हो। प्यार का मतलब होता है मौजूदगी, हर हाल में एक-दूसरे के लिए मौजूद रहना।
जब कोई टूटा हुआ महसूस कर रहा हो, तो यह कहना -#मैं हूँ ना तुम्हारे साथ# प्यार का मूल मंत्र यहीं है।
रिश्ते या प्यार का मतलब होता है अपनों के लिए ( चाहे संतान हो, प्रेमी प्रेमिका हो, पति-पत्नी) सहारा बनना जब वो खुद को बिखरा हुआ महसूस कर रहे हों, टूटा महसूस कर रहा हो।
जब हालात मुश्किल हों,जब सब कुछ उलझा हो, तब भी उनके साथ खड़ा रहना सच्चे प्यार की पहचान है।
प्यार सिर्फ आसान दिनों का नाम नहीं है — वो अच्छे पल, सुखद समय, वो संतुलित दिन हंसी -खुशी का ही साथ का नाम नहीं।
प्यार तो उन बुरे दिनों में देखा जाता है जब एक इंसान टूट रहा हो और दूसरा पूरे शिद्दत से रिश्ते को संभाल रहा हो।
जब आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं, तो मुश्किलों में उनका साथ नहीं छोड़ते।
आप उनकी परवाह करना बंद नहीं करते हैं, उनसे जबरन मुस्कराने की उम्मीद नहीं कर सकते। आप उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकते वो अब पहले जैसा नहीं रहें।
सिर्फ इसलिए क्योंकि वो उतना नहीं दे पा रहे जितना पहले देते थे, प्यार मिट नहीं जाता है। आप उन्हें संभालकर मुस्कराना सीखा सकते हैं, यह भावना दिल से आनी चाहिए, केवल दिखावा नहीं करें।
ऐसे में आप उनका हाथ थामते हैं, आप उन्हें सुनते हैं, संभव हो मदद करते हैं। यह एहसास ही बहुत होता है किसी टूटते इंसान के लिए कि कोई है जो उसके साथ खड़ा है।
आप अपना कीमती समय देते हैं, क्योंकि आपको पता है उन्हें आपकी जरूरत है।
यह सब आप इसलिए करते है, क्योंकि आप उन्हें चाहते हैं, और आप उन्हें ये एहसास दिलाना चाहते हैं कि वो अकेले नहीं हैं, मैं भी आपके हर पल में आपके साथ खड़ा हूं।
यही है असली प्यार या रिश्ते जो अच्छे-बुरे, आसान -कठिन समय में भी एक जैसा बना रहे। परिपूर्ण होना नहीं साथ निभाना ही प्यार है।
यह परिपूर्ण होने का नाम नहीं है, यह साथ निभाने का नाम है।
जब कोई टूटा हो कमज़ोर हो, तो दूसरा बिना कहे उसे संभाले, उसके लिए मज़बूत बन जाए। इसलिए नहीं कि क्या करूं मजबूरी है, बल्कि इसलिए क्योंकि आप प्यार करते है और उस प्यार या रिश्ते को बचाना चाहते हैं।
सच्चा रिश्ता वो होता है जिसमें दोनों एक-दूसरे पर हर हाल में भरोसा कर सकें। विश्वास ही तो सच्चे रिश्तों की नींव है। झूठ पर नहीं रिश्तों की बुनियाद सचाई पर हो ताकि हर तूफान को झेल सके।
प्यार हर दिन एक-दूसरे को चुनने का नाम है प्यार में स्थिरता होना इसे मजबूत बनाता है।
यह भी मायने रखता है कि आप दोनों साथ हैं, एक-दूसरे के लिए समर्पित हैं, और जो भी करना पड़े, करने के लिए तैयार हैं। यही प्यार ठहराव की स्थिति है- एक ऐसा प्यार जो भरोसे, धैर्य और अटूट जुड़ाव पर टिका हो।
जब आप ज़्यादा देते हैं, जब आप बिना शर्त निभाते हैं तो आप अपने रिश्ते को मजबूत बना रहे होते हैं। आप अपने साथी को विश्वास दिला रहे होते हैं कि वह आप पर आश्रित रह सकता है। आपके कंधे पर भरोसा रख सकते हैं, आप उनको हर हाल में साथ देंगे।
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