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स्त्री हैं💃 पुरुष नहीं👨 कहां समझ पाती है

BesumaarChoteChotePal

एक गीत लिखना बस एक गीत मेरे लिए।

जिसमें तारीफ ही तारीफ हो बस मेरे लिए।


मेरे लिए लिखना🖊️


एक ऐसा गीत जिसमें मैं हूं और कोई ना हो।

अकेले दिखूं *मै ही मैं* और तुम्हारे गीत हो।


मेरे भाव और अरमानों का जिक्र हो।

नींद में छुप कर आने वाले सपने हो।


जो चाह कर भी जी ना सकी वो पल हो।

दर्द लिखना जो मेरे लिए दवा बन गए हो।


पल छोटे - छोटे 🕘


बेशुमार छोटे-छोटे पल जो गीना ना जाए।

सारे पल जुड़े जिंदगी मुकम्मल हो जाए।


फूल, खुशबू, तितली, मिट्टी और पवन लिखना।

खुशबू को तरसता भ्रमर उदास चमन लिखना।


प्यार, प्रेम, मुहब्बत, चाहत नहीं❓ इश्क लिखना।

तलब लिखना तो बदन नहीं 💃केवल रूह लिखना।


मुस्कुराते चेहरे में छिपा मेरे मन ❤️की पीड़ा लिखना।

अपनी भावनाओं का गला घोंटने की व्यथा लिखना।


कछुए की तरह अपने ही कवच में समेट लेने वाला।

जिद्दी, डरा, सहमा, थका, हारा सा किरदार लिखना।


मृतप्राय हो चुकी थी रोना, रूठना सब भूल गई थी।

तुमसे लड़ना, उलझना, उलाहना देना सब भूल गईं थीं।


शायद पगली जीते जी कैसे मरा करते सीख गई थी।

झूठ से नफ़रत थी उसे जिंदगी ने हमेशा झूठ ही दिया।


सच में थोड़ा सा भी हेराफेरी कर देने पर वह सच नहीं।

सब चीज़ की हद होती है, झूठ की कोई हद होती नहीं।


वैसे सच कहूं पगली भीड़ में भी अकेली रही।

ढूंढती रही तमाम उम्र खुद को कभी पाई नहीं।

ढ़ूढती रही अपने मैं को जिसे कभी पाई ही नहीं।



तेरे गीत बस * मैं ही मैं रहूं दूसरा ना रहे कोई *

क्या ऐसा कोई गीत मेरे विदाई पर तुम गाओगे।


तुम ना भी गाओगे कोई और गाएगा।

गीत में कौन गा रहा गीना ना जाएगा।

लिखने में यार बस तेरा ही नाम आएगा।


झूठे वादे, खोखले शब्द जिसे संजोए रखा है।

मिलेगा पगली के सिरहाने मैले कुचैले थैले में।


लिखना जो नफरत हिकारत पाई थी तमाम उम्र।

उसे भी तो चिपका रखी होगी, पगली अपने सीने से।


सबको अपना समझकर दौड़ पड़ती है।

इंसान और शैतान में फर्क नहीं करती है।


तुम पूछते हो कोई अपना नहीं है क्या ?

है ना उसके अपने तभी तो वह पगलाई है।


नाम पूछने पर पगली, 😡पुरुषोचित नाम बताती है।

क्या कहूं❓स्त्री है💃पुरुष नहीं👨कहां समझ पाती हैं।



रोते - रोते हंसती है, हंसते - हंसते रोने लगती है।

लोग उसे पागल कहते हैं वह लोगों को समझती है।



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