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Dulhe ki Ankahee veytha
भाग - 3 इस कविता की प्रेरणा मुझे एक विवाह समारोह में मिली जहां मैंने दूल्हे को आंसुओं में देखा। उसके चेहरे पर खुशी की बजाय एक असह्य पीड़ा थी, जो मुझे भीतर तक हिला गई। जब मैं अकेले में उसकी मां से बात करने का साहस जुटा पाई, तब यह हकीकत सामने आई — वह लड़का किसी और से मोहब्बत करता था, लेकिन पारिवारिक दबाव और सामाजिक बंधनों के चलते उसे इस शादी के लिए मजबूर किया गया। उसके आंसू किसी रस्म के नहीं, बल्कि टूटी मोहब्बत और अधूरे सपनों की स्याही थे। जब मैंने उसकी मां से यह पूछा कि उसे उसकी पसंद की लड़की से विवाह क्यों नहीं करने दिया गया, तब उन्होंने बताया कि वह लड़की पिछले साल ही किसी और से विवाह कर चुकी है। यह कविता उस युवा के दर्द को समर्पित है — जिसे जीवन की सबसे अहम घड़ी में अपने दिल की आवाज़ को दबाना पड़ा। मैंने कविता में उसके भाव को बांधने की कोशिश की है। धन्यवाद ❤️ |
सेहरे के साया में जो खो गया,`सेहरा को पहन बैठा था मैं,
जिसे सबने दूल्हा कहा।
पर उस पल मेरे दिल ने कहा--
"मैं किसी और का था कभी।'
गुलाबों से सजी थी शाम सुहानी,
पर मेरी यादों में थे कांटे ही कांटे।
बाजे बजे, ढोलक भी थे गूंजे पर,
दिल के सुर थे खाली के खाली।
मुहब्बत की वो पहली बारिश,
अब यादों की रेत बन चुकी थी।
वो नाम जो होंठों पे था कभी,
अब सेहरे के ओट छुपी थी।
बारात के चकाचौंध में,
पुरानी चिट्ठी फिर याद आई।
कुछ लम्हे कुछ अनकहे अल्फाज़।
उस पल महसूस किया मैंने तूफ़ान।
कहो क्या तुमने भी महसूस किया था।
टूटन जब लिखा हाथ पर मेंहदी से नाम?
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