इस कविता की प्रेरणा मुझे एक विवाह समारोह में मिली जहां मैंने दूल्हे को आंसुओं में देखा। उसके चेहरे पर खुशी की बजाय एक असह्य पीड़ा थी, जो मुझे भीतर तक हिला गई।
धन्यवाद ❤️
सिर्फ एक लफ्ज़ थे- माफ़ करना
बारात में खड़ा वो लड़का,
दुल्हा नहीं, एक अफ़सोस बन गया।
मोहब्बत से भरा हुआ दिल,
आज रस्मों से शून्य हो गया।
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"सेहरे की ओट में जाने क्या खो गया"
वो शाम सबके लिए जश्न थी,
पर मेरे लिए था जनाजा मेरा।
सदा के लिए विदाई का लम्हा।
सेहरा सिर पर था, पर दिल में एक तूफ़ान।
बारात की चकाचौंध में मैं मुस्कुरा रहा था।
पर वो मुस्कान महज़ नकाब थी —
एक टूटे हुए दिल का नाकाम पर्दा।
जिसके साथ पूरी ज़िंदगी बिताने के ख्वाब थे,
वो ख्वाब किसी और की आँखों में पल रहे थे।
मेरे नाम की मेंहदी उसके हाथ में सज रहे थे।
कुछ दिन पहले मिली थी एक चिट्ठी,
सिर्फ़ एक लफ़्ज़ था — “माफ़ करना।”
उस खत में जो लिखा भी नहीं गया था,
वो लफ्ज़ मेरे रग- रग में अब बह रहा था।
शहनाइयाँ, फूल, और रस्में — सब चालू थीं,
पर मेरा मन जैसे एक खुली किताब बन गया था,
जिसका आख़िरी पन्ना कोई और लिख गया था।
सेहरे की हर मोती में भी,
अधूरे इश्क की गूंज सुनाई दे रही थी।
हर 'मुबारक हो' में दिल पूछता आखिर क्यों ?
मुझे अपने अधूरे इश्क़ की गूंज सुनाई दे रही थी।
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