Cactus hara hokar bhi chubhta hai
रिश्ते यूँ ही खत्म नहीं होते,
बातों की मौनता नज़रों की चुप्पी बन जाती है।
चुप्पी तोड़ने की हिम्मत खो जाती है,
फिर भी हर सुबह-शाम दिल से जुड़ी रहती है।
कभी कोशिशें हुई थीं,
पर थक कर बैठ गए थे रिश्ते।
दिल की खिड़की धीरे-धीरे बंद हो गई,
छिटकनी खोलने वाले हाथ भी थम गए।
अब खामोशी ही जीवन है,
चलते हुए टकराकर भी नज़रें मुड़ जाती हैं।
मरे घोड़े घास नहीं खाते,
तकिये भी अब आंसुओं की आवाज़ नहीं सुनते।
एकतरफा कोशिशें आसान नहीं,
मुस्कान के पीछे रखा दर्द अब फूल नहीं,
लगता है एक गमले में कैक्टस रोप दिया है,
जो हरा-भरा है, फिर भी चुभता है।
जब रिश्ते मन के भीतर कर्कश लगते हैं,
और ज़िंदगी में गैर-ज़रूरी महसूस होते हैं—
तब समझ आता है,
कि खामोशी भी एक रिश्ता है।
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