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4- Sehre ka chupa dard/अधूरी मुहब्बत/जज़्बातो का जनाजा

Riste ke chaurahe par tha akela khara

भाग- 4
इस कविता की प्रेरणा मुझे एक विवाह समारोह में मिली जहां मैंने दूल्हे को आंसुओं में देखा। उसके चेहरे पर खुशी की बजाय एक असह्य पीड़ा थी, जो मुझे भीतर तक हिला गई।  

जब मैं अकेले में उसकी मां से बात करने का साहस जुटा पाई, तब यह हकीकत सामने आई —
वह लड़का किसी और से मोहब्बत करता था, लेकिन पारिवारिक दबाव और सामाजिक बंधनों के चलते उसे इस शादी के लिए मजबूर किया गया।  
उसके आंसू किसी रस्म के नहीं, बल्कि टूटी मोहब्बत और अधूरे सपनों की स्याही थे।  
जब मैंने उसकी मां से यह पूछा कि उसे उसकी पसंद की लड़की से विवाह क्यों नहीं करने दिया गया, तब उन्होंने बताया कि वह लड़की पिछले साल ही किसी और से विवाह कर चुकी है।  
यह कविता उस युवा के दर्द को समर्पित है — जिसे जीवन की सबसे अहम घड़ी में अपने दिल की आवाज़ को दबाना पड़ा।
मैंने कविता में उसके भाव को बांधने की कोशिश की है।

धन्यवाद ❤️ आपके सुझाव और काॅमेट का स्वागत है।🙏


सेहरे ने कहा अब मैं तेरा ना रहा,

गवाह है फूल टंके थे जो सेहरे में।


किसी और की मेंहदी में लिखा नाम मेरा।

रिश्तों के चौराहे पर मैं था अकेला खड़ा।


तेरी मेहंदी में अब नाम मेरा ना रहा।

किसी और रिश्तों के रंग में रंगा हुआ।


अधूरी मुहब्बत कहानी बन कर रह गई।

फिर पुरानी वो चिट्ठी फिर याद आ गई।



वो फूल जो बिछाए गए थे मेरे सपनों के,  

उन पर मेरी मुहब्बत की ही छाप रह गई।


मैं मुस्कुराता रहा दिल तड़पता रहा।

आंसू बर्फ बन दिल में ही जमता रहा।


कभी जो सपने संग हमारे चलते थे,  

आज वो सपने भी सवाल करते लगे।

  

ख़ुशी की भीड़ में मै तन्हा खड़ा ही रहा,

जिंदगी चलती रही मैं जंग हारता ही रहा।


हारे हुए खिलाड़ी को पुरानी चिट्ठी याद आई।

`

चिट्ठी अब भी वो मेरे पास पड़ी है,  

जैसे वो लम्हा वहीं ठहर सा गया।


स्याही तो सूख गई कब की उसकी,  

पर अल्फ़ाज़ अब भी रोते रहते वहीं।  


तूने लिखा था — “ख़ुश रहना”,  

मैंने पढ़ा — “अब अकेला रहना।”  

तेरे हर लफ़्ज़ में थी इतनी ख़ामोशी,  

जो मेरी तन्हाई में भी गूंजती रही।


तन्हाई में भी वो पुरानी चिट्ठी याद आई।


बारात की शहनाइयाँ गूँजी,  

मेरे अंदर सन्नाटा बजता रहा।

  

मेरे नाम की मेहंदी किसी के हाथों में,  

देख मैं अपना वजूद तक खोता रहा।


शहनाई की धून में पुरानी चिट्ठी याद आई।


वो चिट्ठी अब एक अफ़साना है,  

जिसे पढ़कर मैं ना रोता ना मुस्कुराता हूं — 

तेरी बेरुखी ने बता दिया,  

मोहब्बत कभी भी पूरी नहीं होती — 

बस मुकम्मल लगती है होती नहीं।

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