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Riste ke chaurahe par tha akela khara |
भाग- 4
धन्यवाद ❤️ आपके सुझाव और काॅमेट का स्वागत है।🙏
सेहरे ने कहा अब मैं तेरा ना रहा,
गवाह है फूल टंके थे जो सेहरे में।
किसी और की मेंहदी में लिखा नाम मेरा।
रिश्तों के चौराहे पर मैं था अकेला खड़ा।
तेरी मेहंदी में अब नाम मेरा ना रहा।
किसी और रिश्तों के रंग में रंगा हुआ।
अधूरी मुहब्बत कहानी बन कर रह गई।
फिर पुरानी वो चिट्ठी फिर याद आ गई।
वो फूल जो बिछाए गए थे मेरे सपनों के,
उन पर मेरी मुहब्बत की ही छाप रह गई।
मैं मुस्कुराता रहा दिल तड़पता रहा।
आंसू बर्फ बन दिल में ही जमता रहा।
कभी जो सपने संग हमारे चलते थे,
आज वो सपने भी सवाल करते लगे।
ख़ुशी की भीड़ में मै तन्हा खड़ा ही रहा,
जिंदगी चलती रही मैं जंग हारता ही रहा।
हारे हुए खिलाड़ी को पुरानी चिट्ठी याद आई।
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चिट्ठी अब भी वो मेरे पास पड़ी है,
जैसे वो लम्हा वहीं ठहर सा गया।
स्याही तो सूख गई कब की उसकी,
पर अल्फ़ाज़ अब भी रोते रहते वहीं।
तूने लिखा था — “ख़ुश रहना”,
मैंने पढ़ा — “अब अकेला रहना।”
तेरे हर लफ़्ज़ में थी इतनी ख़ामोशी,
जो मेरी तन्हाई में भी गूंजती रही।
तन्हाई में भी वो पुरानी चिट्ठी याद आई।
बारात की शहनाइयाँ गूँजी,
मेरे अंदर सन्नाटा बजता रहा।
मेरे नाम की मेहंदी किसी के हाथों में,
देख मैं अपना वजूद तक खोता रहा।
शहनाई की धून में पुरानी चिट्ठी याद आई।
वो चिट्ठी अब एक अफ़साना है,
जिसे पढ़कर मैं ना रोता ना मुस्कुराता हूं —
तेरी बेरुखी ने बता दिया,
मोहब्बत कभी भी पूरी नहीं होती —
बस मुकम्मल लगती है होती नहीं।
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