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Yahi Rahungi Awaaz nahi dungi |
ढेरों बातें करनी थी तुमसे।
छोड़ो अब जाने भी दो....
शायद अब नहीं कर पाउंगी।
यही रहूंगी पर आवाज ना दूंगी।
बहुत कुछ टूटा है अंदर ही अंदर।
बिखरे टूकड़ो को समेटना बाकी है।
मैं भूल जाऊंगी सब थोड़ा वक्त दो।
सुना है वक्त हर घाव का मरहम हैं।
मरहम को असर करने तक टीसने दो।
मैं आत्मिक प्रेम में लीन हो जाऊं।
प्रेम में मैं और मुझमें प्रेम वश जाए।
जागते सोते तेरा प्रेम मेरी प्रेरणा बन जाए।
जन्म- जन्मांतर तक दिल में घर कर जाए।
विछोह में भी तेरी ही सूरत नज़र आए।
आंखें तुम्हारी छवि को ही समर्पित हो जाए।
प्रेम को जीवित रखने के लिए भाव काफ़ी है।
मेरे ह्रदय के अरमान और एहसास काफ़ी है।
जाओ तुमको अब इस बंधन से मुक्त करती हूं।
नया सफर में प्रेम के मायने समझने चलती हूं।
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