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एक खत एक मुलाकात

 



Bas ek mulakat 


मेरी प्रिय (जिसे आज भी मन अपना कहता है),


जब तुमसे आख़िरी बार मिला था, शब्द नहीं थे हमारे बीच — सिर्फ़ मौन। मगर उस मौन ने जो कह दिया था, उसे अब तक बयाँ नहीं कर पाया हूँ।


मैंने तुमसे बिछड़ कर बहुत कुछ सीखा — ख़ामोशी की भाषा, तन्हाई का स्वाद, और यादों की नमी। सेहरे के मोती जब गिरते थे, तो हर मोती में तुम थी… और अब, जब मैं लिख रहा हूँ, तो हर लफ़्ज़ में भी तुम ही हो।


मुशायरे की वो रात याद है? जब तुमने एक शेर पढ़ा और मेरी रूह रो उठी — वहाँ तुमने कुछ नहीं कहा, पर मैं सुनता रहा। हर शेर तुम्हारी आँखों से निकलता, और मेरी रगों में उतरता।


आज, जब मौसम भी तुम्हारी बात करता है, जब हवा तुम्हारी खुशबू लाती है, तब दिल सिर्फ़ एक बात कहता है: "वो अधूरी मुहब्बत, पूरी तो नहीं हुई… पर मुकम्मल महसूस हुई थी।"


अगर यह पत्र तुम कभी पढ़ो, तो जान लेना — कि जिस सन्नाटे में हम बिछड़े थे, वो अब मेरे लिए ग़ज़ल बन चुका है। तुम मेरी कविता हो, और मैं तुम्हारा अधूरा मिसरा।


सदा तुम्हारा,  

जो अब भी तुम्हें हर साँस में पिरोता है।


🌸


मेरे प्रिय (जिसे वक्त छीन ले गया, पर दिल नहीं भूल पाया),


वो आख़िरी मुलाक़ात, जिसमें सिर्फ़ मौन था — क्या तुम जानते हो, वह मेरे लिए सबसे ज़्यादा आवाज़ वाला पल था?


मैं चली थी, पर रुकी रही… वक्त के हर मोड़ पर तुम्हें महसूस किया। तुम्हारे लिखे शेर, तुम्हारी सिसकियाँ, तुम्हारी चुप्पियाँ — सब मेरे साथ रहीं।


चिट्ठियाँ कभी लिखी नहीं… क्योंकि डर था कि अल्फ़ाज़ तुम्हारे जज़्बातों से कम पड़ जाएँगे। पर तुम्हारे उस पत्र ने अब वो डर मिटा दिया।


वो मुशायरे की रात... मैं मंच पर नहीं बोल रही थी, मैं सिर्फ़ तुम्हें सुना रही थी। हर शेर तुम्हारी साँसों के लिए था, हर मिसरा तुम्हारे अधूरे ख़्वाब का रंग था।


जब तुमने कहा — “तेरा सेहरा था सबका नज़ारा, मेरा टूटना बस खुद की नज़रों में रह गया।”  

तब मेरी आँखों ने जवाब दिया — “तू टूटा नहीं था, मैं तुझे पूरेपन में ही छोड़ आई थी।”


अब, जब यह पत्र लिख रही हूँ, तो पता नहीं — ये पहुँच पाएगा या नहीं।  

पर अगर पहुँचे... तो जानना, मेरे दिल में आज भी तुम्हारा वो अधूरा मिसरा सांसें लेता है।


कभी मिलें तो एक कप चाय — इस बार बिना मौन, बिना शिकायत, बस अपने अपने शे’र सुनाते हुए, एक बार फिर जीने के लिए, कुछ खुशनुमा क्षण संजोने के लिए। बस एक और मुलाकात अपनी कहने के लिए तुम्हारी सुनने के लिए।


तुम्हारी —  

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