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आंचल का टूकड़ा कृष्ण को याद नहीं |
गुजरे वक्त के दोस्त दोबारा नहीं मिलते।
मिलने को मिल जाएंगे सफर में हजारों।
बचपन में खोए वह दोस्त पुराने नहीं मिलते।
बचपन की दोस्ती में लिंग,जाति,धर्म ना रहते।
निश्छल आत्मा, भावना से परिपूर्ण रहनेवाले।
खिल- खिला कर हंसने के बहाने नहीं मिलते।
मुस्कुराने लगे हैं अब हम तो बात- बात पर।
सच हो या झूठ फिर भी मुस्करा लिया किए।
मेरे दिल की मायूसी भी भौंचक सी तकती रही।
दिमाग वाले दिल की भाषा समझा नहीं करते।
मित्रता का वह भाव जो हर सीमा तोड़ सके।
पहले जैसे कृष्ण सुदामा अब हुआ नहीं करते।
आंचल का टूकड़ा कृष्ण को याद ही नहीं।
दुर्योधन के भाग्य में कर्ण जैसा कोई नहीं।
इस रिश्ते से बड़ा ख़ून के रिश्ते भी नहीं हुआ करते।
प्रेम,विश्वास,समर्पण और सम्मान पर जो टिका करते।
मित्रता का बंधन समस्त मानवता का सेतू हुआ करते।
दिल से जुड़ कर दिल तक पहुंच दिल जीत लिया करते।
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