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Mukti ki chah thi

 


(1) विश्वास और धोखे का स्वर)
  

धोखा जब फूलों से पाया,  

अब कांटों का पेड़ लगाएंगे।  

ज़ख्मों से डरना छोड़ दिया,  

अब दर्द को गीत बनाएंगे।


(2) दोस्ती और दूरी)  

भूल कर भी ना अब कभी,  

दोस्तों को आजमाएंगे।  

दिल की चौखट पर अब हम,  

ख़ामोशी ही सजाएंगे।


(3) प्रेम और पहचान)  

महफ़िल में जब सब पूछें नाम मेरा,  

बेखुदी में तेरा ही नाम बताएंगे।  

तेरी यादों की चूनर ओढ़,  

हर शाम को हम सजाएंगे।


(4) आध्यात्मिक खोज)  

वेद, ग्रंथ, गीता या कुरान में,  

हर जगह तुझको ही पाएंगे।  

तू ही बता प्रियतमे हमें,  

इबादत कैसे कर पाएंगे?


(5) प्रेम की छाया)  

चांद-तारों में तेरी छवि दिखे,  

आंखों में नींद कहां से लाएंगे?  

कहो प्रियतमे, सपनों में भी,  

हम जब तुझको ही पाएंगे।


(6) मुक्ति और मोह)  

मुक्ति की चाह थी, चलो मुक्त करती हूं,  

कहां जाना है, अब बैठकर सोचती हूं।  

सोचा न था, वो फैसला यूं करना होगा,  

वर्तमान छोड़, भूत में फिर से लौटना होगा।

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