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Prem Marta nahi

 



प्रेम बहता है मौन में  

  

प्रेम बहता है मौन में,  

जैसे संध्या की आरती में🪔


बिना बोले जलता हो कोई दीप,  

जैसे किसी पीपल की छांव में,

किसी ने चुपचाप रख दी हो,  

अपनी थकान, अपनी उम्मीदें।  


वो प्रेम जो शब्दों से परे है,  

जो स्पर्श नहीं, समर्पण है,  

जो हरि के चरणों में नहीं,  

हरि के हृदय में उतरता है।  


कभी किसी के कंगन की खनक में,  

कभी किसी के मांग बिंदी की चुप्पी में,  

कभी किसी अधूरी नज़्म के विराम में  

छुपा होता है वो प्रेम किसी के हृदय में,


जिसे तुमने खो गया कह कर छोड़ दिया।  


पर वह प्रेम है जो खोता नहीं,  

वो बस बदल लेता है अपना रूप —  

कभी आशीर्वाद बनकर,

फिर से छू जाता है कहीं। 

 

किसी अनजाने गीत की धुन बनकर,  

कभी किसी और ? की मुस्कान बनकर,

हवा का तूफानी झोका बनकर,

तुम्हें फिर से आकर छू जाता है।



तुम कहते हो कि प्रेम मर गया---

मैं कहता हूं— प्रेम तो वो है--?

जो मृत्यु के बाद भी  

किसी मंदिर की घंटी में,🔕

किसी नदी की लहर में,

बारिश की भींगी फुहार में,🌦️

तेज हवा की सरसराहट में,

किसी चांद की चुप्पी में,☪️

सुनहरे सपनों की आहट में,

दिखता था, है और रहेगा ❤️


प्रेम विश्वासघात से टूटता जरुर है।

परन्तु----अगर था तो रहता जरुर है।

प्रेम को अमरत्व प्राप्त है मरता नहीं है।


प्रेम यानी जो मौन में भी जिंदा रहता है,  

जिसने कभी मेरा नाम लिया था।  

और मैं सुनकर मुस्कुरा गया था।


प्रेम के घंटे महीने साल नहीं गीन पाओगे।

प्रेम के अस्तित्व को समय से परे पाओगे।

पंचास साल या पूरी जिंदगी ?

अगले जन्म के वादे सहित,

समर्पित है उस क्षण को---

पहली बार जब तूने मुझे नाम से पुकारा।


प्रेम यानी मेरा वो विश्वास,  

जिसने मेरी आंखें बंद की थीं, 

और मैं खुद को पा गया था।

आत्मिक शांति पूर्णता लिए।


प्रेम यानी वो आत्मसम्मान का वह क्षण,

जिसमें तुमने मेरी आत्मा को छुआ था।  

बिना किसी शर्त,बिना किसी अधिकार के।  


प्रेम मरा नहीं करते,  

वो बस प्रतीक्षा करते हैं  

कोई हाथ फिर से उन्हें,  

मन्नतों के धागों में बाँध दे,

फूल पीरो कर माला बना दें।

हरि चरणों में अर्पित कर दे

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