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Tum to dil ki sada-ye-Hayat ho

 



ग़ज़ल: आदत की सूरत में मोहब्बत


वो जो हर रोज़ ख़्वाब में आता है,  

दिल उसी की याद में मुस्काता है।


पास हो तो चैन सा मिलता है,  

दूर हो तो दिल बहुत घबराता है।


क्या ये आदत है, या मोहब्बत है,  

शक का साया हर तरफ़ छाता है।


बिन वजह भी नाम उसका लब पे,  

रूह तक को वो असर दिखाता है।


दुआ में उसका ज़िक्र रह जाए,  

इश्क़ ही है,ये सब कर जाता है।


आदतें तो वक़्त से मिट जाती हैं,  

इश्क़ शायद दिल में बस जाता है।


चेहरा चाय की भाप में छवि बनाता है,  

हर शामो- सहर वो ही नज़र आता है।


मोहब्बत आज़ाद करती है हमें,  

आदत तो बस क़ैद कर जाती है।



(1) ग़ज़ल: तुम आदत नहीं मोहब्बत हो


तुम आदत नहीं मोहब्बत हो,  

मेरी कमजोरी नहीं — ताक़त हो।


हर लम्हा तुमको बस सोचता रहूं ,

जो लम्हा तुम्हें सोच लूं मैं,  

वो सदा मेरी रूह की इबादत में रहे।


आदत होती तेरी तो छूट ही जाती,  

तुम तो दिल की सदा-ए-हयात हो।

तुम तो मेरे इश्क़ की शहादत हो।


अपनी मोहब्बत पर शक नहीं,  

तुम मेरी सबसे बड़ी राहत हो।

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