---
![]() |
Isak ke khatir khuda se bagavat ki hai |
आत्मा (धीमे स्वर में):
कर्ज तो इतना था कि साँस भी गिरवी रख दी थी,
सूद में जीया, मूल तेरे नाम की धरोहर कर दी थी।
मगर मैं लौट आया हूँ... खाली नहीं,
एक वादा करके गया था,
एक वादा साथ लाया हूँ।
कर्जदाता (मुस्कुराकर):
तेरी बातों में इंकलाब है,पर हिसाब तो अभी बाक़ी है।
कितनी दफ़ा तुमने उम्मीद की उधारी ली थी मुझसे ?
आत्मा:
उम्मीद वही है जो मैं तेरे आँगन में लगाना चाहता हूँ।
एक अमीरी का शजर—
जिसकी छांव में तुम चैन पाओगे।
तूने मेरे इश्क़ की कीमत पूछी थी ?
इश्क़ के खातिर मैंने खुदा से बगावत किया है।
हर दोज़ख मैंने अपने नाम हंसकर पार किया है।
कर्जदाता:
दोज़ख से डर नहीं लगता तुझको, ये तो देख चुका हूँ।
मगर बदनामी की जो आग है, तुम उससे कैसे बचोगे ?
कामयाबी आते ही बदनामी खुद ही नजरें चुरा लेगी।
तेरा मैं केवल एक नाम नहीं आदर्श बन चुका होगा।
एक आखिरी कविता उसको ही समर्पित होगा।
उसका यह सौदा होगा और मेरा प्रायश्चित होगा।
इश्क़ के सौदागर यह कविता तेरे नाम करती हूं।
यह कविता नहीं पुनर्जन्म के वादा का प्रतीक है।
जन्म जन्मांतर तक लिखता रहूंगा,
तेरी कलम मेरी लेखनी से अवतरित,
कविता का हर शब्द बस तेरा प्रतिबिम्ब होगा।
0 Comments