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Mrigmarichika hai bas ek aadat

 


Mrigmarichika hai bas ek aadat

बिना वजह भी याद आ जाए,  

क्या ये रूह की पुकार है — 

या दिल की आदत है?


उसकी ख़ामोशी में सुकून मिले,  

क्या ये अपनापन है — 

या बस आदत की राहत है?


हर दुआ में उसका नाम आए,  

क्या ये इबादत है — 

या आदत की इबादत है?


वो ना हो तो सब सूना लगे,  

क्या ये मोहब्बत है — 

या तन्हा सी आदत है?


मोहब्बत तो आज़ाद करती है,  

आदत में डर की सियासत है।


दिल कहता है — छोड़ नहीं सकते,  

शायद ये मोहब्बत है... 

यार यही तो आदत की साज़िश है।


(2)


मोहब्बत है? या आदत है?


वो जो हर रोज़ हर पल याद आता है,  

क्या वो इश्क़ है ? या बस एक आदत?


मुहब्बत में तो खामोशी भी बोलती है।

मुहब्बत अगर होती तो रुह में उतरती।


तेरे जाने के बाद चलती सांसे कहती हैं।

मोहब्बत होती तो रहमत बन जाती।


क्या वो इश्क़ है — या बस एक आदत है?

मृग मरीचिका है यारा इश्क नहीं आदत है।

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