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Kalpurush meri pooja Khandit na ho

 



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खगोलीय प्रेमपत्र है—एक तारे के लिए, जो बचपन से केवल आकाश में नहीं, आत्मा के भीतर भी टिमटिमा रहा है। आर्द्रा तारे दीर्घायु आशीष से नवाजा गया निजी जीवन में बदल दिया है, यह कविता नहीं, एक अंतरिक्षीय आत्मकथा है। खगोलशास्त्र की भाषा ही नहीं, बल्कि भावनाओं की अभिव्यक्ति है। एकान्त का द्वैत: “मैं यहाँ अकेला हूँ, वहाँ आर्द्रा अकेला है”—यह पंक्ति दो ब्रह्मांडों को जोड़ती है:---

एक मानव का मन , एक तारे का अस्तित्व और दोनों के बीच एक मौन संवाद है। - खगोलविद् की कथा:--- एक प्रेमी की पुकार है। - सुपरनोवा की प्रतीक्षा नहीं: “भला कौन होगा, जो उस आतिशबाज़ी की बटजोही करेगा?”— मृत्यु कोई तमाशा नहीं, उसका संबंध मायने रखता है। मेरी अंतिम इच्छा: “मेरे जीवन की लौ जिस दिन टिमटिमाकर बुझे, आद्रा रुपी ( जिसे देख-देख मेरा बचपन बीता) तारा आकाश में मौजूद हो,चमकता रहें।


एक तारा था, जो मेरी साँसों में बसता था,

बहुत- बहुत दूर, फिर भी सबसे करीब था।


वो टिमटिमाता नहीं था, वो धड़कता था,

मेरे एकान्त का साथी, मौन में बोलता था।


जब सुना कि वो अब नहीं दिखेंगा, 

बहुत कुछ टूटा —

फिर भी विश्वास गहरा जुड़ गया, 

जो कभी नहीं छूटा।


मैंने उसे देखा था, 

हर शाम की चुप्पी में,

वो मेरी आँखों में उतरता था, 

वगैर किसी आवाज या साजिश के।


अब जब वो जाएगा तो,

मैं भी कुछ कम हो जाऊँगा,

पर उसकी याद में, 

मैं भी तो एक तारा बन जाउंगा,

कालपुरुष के लिए टिमटिमाउंगा




🌌 "आर्द्रा : एकान्त का दीप"


550 प्रकाश-वर्ष दूर,  

एक तारा टिमटिमाता है—  

जैसे किसी पुराने मित्र की आँखों में  

अलक्षित आँसू चमकते हों।


मैं धरती पर अकेला,  

वो आकाश में अकेला।  

हम दोनों की चुप्पियाँ  

एक-दूसरे को सुनती हैं।


मृग के कंधे पर जड़ा, 

लाल रंग का एक नगीना,  

जैसे किसी ने मुझे मेरे नाम से पुकारा—

कौन???

"आर्द्रा", और ओठों पर मुस्कराहट आ गई।


वो कोई प्रभा नहीं,  

एक इयत्ता है,  

एक आत्मा है,  

जो मेरी साँसों में बसती है।


सब कहते हैं, वो मर रहा है।  

लेकिन क्यों जवान मौत है यह—  

मर्गे-नागिहानी।  

एक ऐसी मशाल, जो तमाम उम्र,

दोनों सिरों से जली।


मैं नहीं देखना चाहता, 

उस सुपरनोवा की आतिशबाज़ी।  

मैं चाहता हूँ ---

जब कभी मेरी लौ बुझे,  

वो तारा तब भी टिमटिमा रहा हो।


मेरी जेब में जीते सारे,

काँच के कंचे बचे रहें,  

और उनमें सबसे लाल,  

सबसे आत्मीय मेरा,

आर्द्रा हो जो चमकता हो।


बचपन से जुड़ा आद्रा,

तुमको देखकर जवान हुआ।

कैसा होगा श्रृंखला से बिछड़ा,

एकान्त तेरी स्मृति में जीवन।

प्रिय साथी आद्रा---

बिना कहे साथ चलते रहे हो।


मैं तुम्हें देखता हूँ,  

तुम मुझे देखता है—  

हम दोनों चुप हैं,  

पर मौन में एक संवाद है--

ऐसे ही चलते रहना,

कभी आंखों से ओझल नहीं होना,

मेरी तपस्या खंडित ना हो,

कालपुरुष मेरी कविता अधूरी ना हो 🙏

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