मेरा थर्ड आई चक्र का अनुभव
आज के ध्यान सत्र में थर्ड आई चक्र पर विशेष अभ्यास हुआ। सर ने कई व्यायाम करवाने के बाद हमें अपने ध्यान भौंहों के बीच केंद्रित करने के लिए कहा। जब हम सब मौन में बैठे, लगभग दो मिनट बाद मेरी आँखों के भीतर एक नीला, इंडिगो रंग का प्रकाश प्रकट हुआ।
शुरुआत में यह प्रकाश जैसे किसी प्रयास से बुलाया गया हो, लेकिन धीरे-धीरे वह स्वयं फैलने लगा। उसी प्रकाश में मुझे अपने ईष्ट देव श्रीकृष्ण की छवि क्षणभर के लिए दिखाई दी। वह दर्शन बहुत अल्प समय के लिए था, परंतु इतना गहरा कि मन उसे बार-बार पुनः देखने की कोशिश करता रहा।
नीला प्रकाश पूरे शरीर में फैलता रहा, परंतु बार-बार प्रयास करने पर भी कान्हा के दर्शन फिर नहीं हो पाए। उस क्षण में मुझे दो भावनाएँ एक साथ मिलीं—
- खुशी: प्रभु की छवि देखने का आनंद।
- दर्द: उसे खो देने का अहसास।
आँखें बंद करके उस प्रकाश और छवि में डूबे रहने का जो सुख था, वही सुख खोने का दर्द भी उतना ही गहरा था।
मैं यह अनुभव आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ। अक्सर लोग कहते हैं कि ध्यान में कुछ नहीं होता, पर मेरा मानना है कि ऐसा नहीं है। एक साधारण साधक भी, मेरी तरह, यदि प्रभु की छवि देख सकता है तो यह अनुभव हर किसी के जीवन में संभव है।

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