रोटियां तो रोटियां है, हर जगह मिलती है ।
औरों को फुलाती है खुद भी फुली रहती है।
घर द्वार छुड़ाकर हमें परदेशी बनाती है ।
रिश्ते ताक पर रख दो तब पास आती है।
अपनी खुबसूरती पर खुद ही इठलाती है।
पसीना बहाने पर ही तेरे पास आती है।
रोटी की कमी है क्या,कहो अपने वतन में।
पसीना बहाकर तो देखो यहां भी मिलती है।
छत चाहे टपकती हो पर अपनी होती है ।
महलों में रहते हो किरायदार कहाते हो ।
यहां रोटी जो बनती है मां के हाथ से सीखती है।
वह मिठास तुम्हीं बोलो,क्या तुमको मिलती है ।
आ जाओ वतन तेरा, तुझे याद करता है ।
औरों को फुलाती है खुद भी फुली रहती है।
घर द्वार छुड़ाकर हमें परदेशी बनाती है ।
रिश्ते ताक पर रख दो तब पास आती है।
अपनी खुबसूरती पर खुद ही इठलाती है।
पसीना बहाने पर ही तेरे पास आती है।
रोटी की कमी है क्या,कहो अपने वतन में।
पसीना बहाकर तो देखो यहां भी मिलती है।
छत चाहे टपकती हो पर अपनी होती है ।
महलों में रहते हो किरायदार कहाते हो ।
यहां रोटी जो बनती है मां के हाथ से सीखती है।
वह मिठास तुम्हीं बोलो,क्या तुमको मिलती है ।
आ जाओ वतन तेरा, तुझे याद करता है ।
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