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जन्मदिन

फिर से मेरा जन्मदिन आया माँ हर जन्मदिन तुम्हारी याद दिला जाता । मै आपकी चौथी बेटी खाश तौर पर अपने जन्मदिन पर जरूर आपके पास होती हूँ । आपने जितनी भी दुआ दी सब लग गई मुझे । कही कोई कमी नही ,फिर भी कभी कभी मन उदास हो जाता है । खाशकर यह दिन जिस दिन मेरा जन्म हुआ था ।
आज के दिन याद आ जाता आपकी और अपनी कहानी । कुछ आपसे सुनी कुछ चाची ने सुनाई थी। दादाजी का परिवार बङा था दादा दादी बहु बेटे पोते पोतिया सब मिलाकर करीब पचीस लोग ,और उस परिवार मे आप फिर से माँ बनने वाली थी । आपके तीन बेटिया एक बेटे थे । ऐसा नही था कि बेटे नही थे आपके फिर भी पूरे परिवार को इंतजार था एक और बेटे का यानि मेरे जन्म का इंतजार ।
अपना परिवार किसान का परिवार था मध्यवर्गीय किसान जिसकी फसल कट चुकी थी । धान तैयार हो रहा था ,खलिहान मे धान और पुआल के अंवार तो घर मे उसना चावल के लिए धान उसने जा रहे थे ।
हमारे यहाँ महिलाए घर मे रहती थी पुरूष दालान पर रहते थे । खाने नाश्ते करने आते फिर दलान पर चले जाते । दालान पर रखे अनाज को भी चोरो से बचाने रहते थे । महिलाए खाना बनाती ,बच्चे सम्भालती ,घर के बङे बूढो का ख्याल रखती । जंचा बच्चा की जबाबदेही घर की बङी बूढी औरते देखती थी ।
घर मे छोटी चाची खाना बनाती थी ,खाना बनाना सबको खिलाना उनका काम था ।
आप धान उसन रही थी आपको प्रसव पीङा शुरू हो गई । आपने चाची को बुलाकर बताया । बात दादी तक पहुँची । दादी ने चप्पल पहने क्योकि घर मे वो खङपा पहनती थी । दादी टार्च ली और चली प्रसव करानेवाली दाई के घर । अंधेरी ठं रात और अकेली दादी मन ही मन भगवान से पोते की मां करती हुई ,दाई को लेकर आई । प्रसव वाले कमरे मे आप और दाई बस । आप कराह भी रही और भगवान से इक और बेटे की गुहार भी कर रही होगी ,ऐसा मुझे लगता है ।क्यो लगता बताऊ पहले ही तीन लङकिया थी आपको ऐसे मे कोई भी चौथी
बेटी तो मांगेगा नही । फिर यह दहेज रूपी दानव भी तो डरा रहा होगा आपको।
ऐसे मे मैं आई ,जैसे ही दादी के कान मे बच्चे की रोने की आवाज आई, दौङते हुए कमरे
मे दाखिल हुई । आपऔर दाई जो प्रसव करा रही थी किसी की हिम्मत न हुई कि मेरे जन्म लेने की खुशखबरी दादी को सुना सके। मेरे यहाँ मान्यता है प्रसव के कमरे मे जाने वाले को स्नान करने पङते है , फिर इतनी ठंड परन्तु दादी धरधराते हुए कमरे मे दाखिल हुई मुझे पलटकर देखा और उन्हे यह समझते देर नही लगी भगवान ने उनकी एक न सुनी फिर से एक पोती दे दिया। दादी गुस्से से कंपकपाती हुई यह कहते हुए कि फिर बेटी ही पैदा की मेरी माँ के पीठ पर दो मुक्का जङ दी । कमरे से भुनभुनाते हुए बाहर चली गई।
अब मै सोच रही माँ भी क्या मेरे जन्म से खुश हुई होगी मेरा मन कहता है नही। आज
जब भी कोई जन्मदिन की बधाई देता मुझे अपने पिताजी की याद आती है। पिताजी से इतना प्यार मिला हमे कि कभी लङकी होने का दुख ही न हुआ । तमाम उम्र पिता जी मेरे आदर्श रहे जिन्होने अपनी बेटियो को अपने एकलौते बेटे से ज्यादा प्यार देकर साबित कर दिया आगे आनेवाले समय मे लोग बेटे और बेटी मे फर्क नही रखेगें ।
                                 नगीना शर्मा





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