शीर्षक देखकर लग रहा है चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को....... चटाई, सुना रही हूं। ऐसी बात नहीं है मेरी अपनी चाची वो भी इकलौटी गांव से शहर यानि मेरे यहां आई हुई थी ।जाहिर है शहर आई है तो एक लिस्ट होगी उनके पास मार्केटिगं की। घर में कोई गेस्ट आर्टिस्ट जाए तो घरवाली महिला को खाना बनाते हुए ही कब दिन होता अब रात आती पता ही नहीं चलता। मेरी माता जी तो वैसे भी खाना बनाने के लिए ही इस धरती पर अवतरित हुई थी। अब उन्हें फुर्सत कहां मार्केट थाने की। मेरी बड़ी बहन की खूबसुरती उसके दुश्मन थे। मां इतनी सुन्दर सी बेटी को चाची के साथ मार्केट थाने नहीं देंगी। मुझसे छोटी बहन कुछ ज्यादा ही छोटी थी। इस लिए मुझे ही इस नेक काम के लिए चुना गया। मां को लगता था इसे बाहर भेजने में कोई खतरा नहीं, काली है कौन नजर डालेगा इस पर।
मुझे बुलाकर आदेश दिया गया आज रविवार है स्कूल बंद है तुम कल्याणी पर से चाची को चप्पल खरीदबा दो। मेरी तो इच्छा हुई मैं इनकार कर जाऊं। मुझे चाची के साथ जाने में बहुत शर्म आ रही थी। ऐसा नहीं चाची बदसूरत थी, चाची देखने में ठीक-ठाक थी,बस उनका देहाती जैसी बोल चाल और माथे पर आंचल डाले रहने से मुझे अपनी सहेली को भी परिचय करवाने में श्रीराम आती थी। मेरी इतनी हिम्मत नहीं की मां के साथ टाल सकूं।
मैं चाची के साथ चली। पूरे रास्ते सोचती रही, चाची ऐसे मुंह छिपाकर क्यों चलती है, लगता है कोई देख लेगा तो इनको नजर लग जाएगी। सोचते - सोचते बांटा आकाश गया जहां से चप्पल लेने दे। पूरी रास्ते हम लोग चुप ही रहे, ऐसा नहीं कि चाची बोलती कम थी दरअसल वह जानती थी मैं उनके बात का जवाब केवल हां या ना में ही दूंगी।
दुकान में जाते ही चाची जो जूते नापने के लिए जो रखा था,उसपर बैठे गई। मैंने उन्हें बैठने के लिए जो कुर्सी थी उस पर आकर बैठने को कहा। उन्होंने ज़बाब दिया-- तू बईठा हम ऐसी ही ठीक हती। मैं गुस्से और ग्लानि का भाव लिए चुपचाप बैठी रही। इतने में दुकानदार पास आकर पूछा किसका लेना है। चाची जानती थी उनके साथ मौनी बाबा है कुछ बोलेगी नहीं,हो खुद ही कमान संभालते हुए बोली-- हमरे नापी के सफाई चप्पल देखाब ,ज्यादा महंगा न देखईह। सदस्यता सुभीस्ता देखाब ।
अब दुकानदार को उनके पैर का नाप चाहिए और चाची नापनेवाले पर बैठी हुई है। उसने कहा मां जी आप इधर बैठ जाइए। न जाने चाची को कितना आनन्द आ रहा था, बोली हो बउआ तू हमर चिन्ता छोड़ हम अतही ठीक हती। खैर चप्पल की खरीदारी हो गई, अब पैसे देने थे, अब चाची का मोल भाव शुरू हुआ। ठीक से याद नहीं चप्पल कितने की थी लेकिन याद है चाची जी का प्यार भरा संबोधन -- हो बउआ कुछो कम क द माय दाखिल हतिअओ,और उसका समझाना। मां जी ई सरकारी दुकान है कम नहीं कर सकते। जब लगा कुछ कम नहीं होने वाला तो पैसा देते हुए बोली - मजबूत तो हओ जल्दी न न टूटत ।नहीं मां जी बहुत मजबूत है कहते हुए उसने चाची की तरफ देखकर पूछा मां जी डब्बा में डाल दें कि पहनेंगी ? अब एक साथ मुझे दो झटके लगे। एक देखा चाची खाली पैर ही आई थी।दूसरा पैसा जहां से निकाल रही थी मेरे लिए असहनीय था। चाची ने चप्पल डिब्बे में रखवाया और हम दोनों रास्ते में आ गए। अब चाची से चुप नहीं रहा जा रहा था बोली-- मुझौसा एको रुपया न छोड़लक , उपर से पुछइत रहे चप्पल पेन्हकर जाइएगा। चप्पल पेन्ह रीती तो डिब्बों रख लेईत।
मुझे बुलाकर आदेश दिया गया आज रविवार है स्कूल बंद है तुम कल्याणी पर से चाची को चप्पल खरीदबा दो। मेरी तो इच्छा हुई मैं इनकार कर जाऊं। मुझे चाची के साथ जाने में बहुत शर्म आ रही थी। ऐसा नहीं चाची बदसूरत थी, चाची देखने में ठीक-ठाक थी,बस उनका देहाती जैसी बोल चाल और माथे पर आंचल डाले रहने से मुझे अपनी सहेली को भी परिचय करवाने में श्रीराम आती थी। मेरी इतनी हिम्मत नहीं की मां के साथ टाल सकूं।
मैं चाची के साथ चली। पूरे रास्ते सोचती रही, चाची ऐसे मुंह छिपाकर क्यों चलती है, लगता है कोई देख लेगा तो इनको नजर लग जाएगी। सोचते - सोचते बांटा आकाश गया जहां से चप्पल लेने दे। पूरी रास्ते हम लोग चुप ही रहे, ऐसा नहीं कि चाची बोलती कम थी दरअसल वह जानती थी मैं उनके बात का जवाब केवल हां या ना में ही दूंगी।
दुकान में जाते ही चाची जो जूते नापने के लिए जो रखा था,उसपर बैठे गई। मैंने उन्हें बैठने के लिए जो कुर्सी थी उस पर आकर बैठने को कहा। उन्होंने ज़बाब दिया-- तू बईठा हम ऐसी ही ठीक हती। मैं गुस्से और ग्लानि का भाव लिए चुपचाप बैठी रही। इतने में दुकानदार पास आकर पूछा किसका लेना है। चाची जानती थी उनके साथ मौनी बाबा है कुछ बोलेगी नहीं,हो खुद ही कमान संभालते हुए बोली-- हमरे नापी के सफाई चप्पल देखाब ,ज्यादा महंगा न देखईह। सदस्यता सुभीस्ता देखाब ।
अब दुकानदार को उनके पैर का नाप चाहिए और चाची नापनेवाले पर बैठी हुई है। उसने कहा मां जी आप इधर बैठ जाइए। न जाने चाची को कितना आनन्द आ रहा था, बोली हो बउआ तू हमर चिन्ता छोड़ हम अतही ठीक हती। खैर चप्पल की खरीदारी हो गई, अब पैसे देने थे, अब चाची का मोल भाव शुरू हुआ। ठीक से याद नहीं चप्पल कितने की थी लेकिन याद है चाची जी का प्यार भरा संबोधन -- हो बउआ कुछो कम क द माय दाखिल हतिअओ,और उसका समझाना। मां जी ई सरकारी दुकान है कम नहीं कर सकते। जब लगा कुछ कम नहीं होने वाला तो पैसा देते हुए बोली - मजबूत तो हओ जल्दी न न टूटत ।नहीं मां जी बहुत मजबूत है कहते हुए उसने चाची की तरफ देखकर पूछा मां जी डब्बा में डाल दें कि पहनेंगी ? अब एक साथ मुझे दो झटके लगे। एक देखा चाची खाली पैर ही आई थी।दूसरा पैसा जहां से निकाल रही थी मेरे लिए असहनीय था। चाची ने चप्पल डिब्बे में रखवाया और हम दोनों रास्ते में आ गए। अब चाची से चुप नहीं रहा जा रहा था बोली-- मुझौसा एको रुपया न छोड़लक , उपर से पुछइत रहे चप्पल पेन्हकर जाइएगा। चप्पल पेन्ह रीती तो डिब्बों रख लेईत।
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