Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

क्षणिकाए--३३

आखों-आखों में न जाने क्या कुछ पिला दिया उसने।
न मुझे अपनी ही खबर , रही न ज़माने का डर रहा।

बेगाना समझता ही रहा वह शख्स मुझे।
जिसके लिए मैंने जमाने को भूला दी है।

अपना समझता रहा तमाम उम्र मैं जिसे ।
जिसकी चाहत में खुद को भी भूला दी है।

अब तो प्यार से मिलते हैं, वो जो दुश्मन थे मेरे।
जब से दोस्तों ने मुझे दोस्ती में धोखा है दिया।

जिसके लिए लाखों अरमान मचलते थे दिल में।
उसने ही मेरी किस्मत में फुरकत की सजा दी है।

जिस दिन से उसने न मिलने की सजा दी है।
बहते आंसूओं ने काजल धोने की खता की है।

मैं जिसे अपनी किस्मत ही समझ रखा था।
उसने एक बार नहीं, सौ बार दगा दी है ।

Post a Comment

0 Comments