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आखिर क्यों ???

जाना था तो तुमको बताकरचले जाते।
मेरा कसूर मुझको गिनाकर चले जाते।
सजा मिली जो मुझको हर आंखों पर।
मेरा गुनाह मुझको बताकर चले जाते।
तेरे इंतज़ार मैं पलके बिछाए बैठी थी।
तुम आए नहीं बस रूलाकर चले गए।
एक बार आकर मेरी खता ही बता दें।
घर बन्द कर दिया कोई साथ भी नहीं।
 इतनी इल्तजा है मेरी चाभी लौटा दे।
हर तरफ खुशी है इक मैं ही उदास हूं।
आप चले क्या गए मैं मौत के पास हूं।
इतने दिनों का साथ का कुछ तो सिला मिले।
सारे रास्ते ही बन्द है अब हम करें तो क्या करें।
दर्द यह नहीं है कि आप घर बन्द कर चले।
ग़म है मुझे कि आपने अलविदा भी न कहें।
हुजूर आए आकर मेरे घर की चाभी मुझे दें।
एक बार मिलकर अपनी गुनाह कबूल सकूं । 

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