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एक कहानी

आप इसे कहानी भी समझ सकते हो और नहीं भी।
 कहानी के दो मुख्य पात्र हैं भुवन और शोभा। जाहिर है कहानी है तो एक लड़का और एक लड़की ही होगें। दोनों के घर पास ही थे ,दोनों परिवार में अच्छी चल रही थी। दोनों एक साथ बड़े हो रहे थे। लड़कियां लड़कों से जल्दी बड़ी हो जाती है। शोभा को भुवन से मुहब्बत हो गई। भुवन को यह पता भी नहीं चल सका कि शोभा के दिल में कुछ है। शहर की पढ़ाई समाप्त कर भुवन आगे पढ़ाई के लिए चला गया । भुवन ने जब अपने बाहर जाने की बात शोभा को बताई तो वह अंदर तक हिल गई। रातभर रोती रही।
उधर भुवन के जाने का वक्त आ गया । जाने के दिन भुवन के घर गई तो भुवन ने पूछा आज तुम बड़ी चुप लगा रही ? शोभा ने अपने मन की आवाज़ को दबाते हुए कहा हां सोच रही तुम चले गए तो बार-बार बात में लड़ूंगी किस्से ? अरे घबराती क्यों हो चाचाजी तुम्हारे लड़ने के लिए कोई उल्लू पकड़ लाएगें, फिर उसी से लड़ती रहना। हां बीच - बीच में फोन करके मुझसे भी लड़ सकती हो। शोभा को ऐसा लग रहा था कुछ और देर रूकी तो जुबान फिसली जाएगी। उसने कहा ठीक है भुवन चलती हुं, तुम ठीक से रहना। यह कहकर वह अपने घर चली गई । किवार बन्द कर ली और जी भर कर रोया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कैसे रहेगी भुवन को देखें वगैर।
समय अपनी गति से बढ़ता रहा । फोन पर बातें होती जैसे शोभा को पता चलता भुवन  छुट्टी में आने वाला है वह एक - एक दिन इंतजार में बीताती और भुवन भी घर आते ही उससे मिलने दौड़ा चला आता। फिर वे घंटों बैठकर आपस में बातें करते,दोनों के ठहाकों से घर की छत कांप उठती । छुट्टी खत्म होते फिर जाने की तैयारी। कभी - कभी तो भुवन कह उठता जाने का जी नहीं करता, तो शोभा को ही कहने पड़ते बस अब एक साल ही तो बचे हैं वो भी निकल जाएंगें।
भुवन जैसे ही अॉफिस में घुसा कुर्सी पर शोभा को देख चौंक पड़ा शोभा तुम ? यहां कैसे ?मैंने तो सोचा भी न था तुमसे यूं मुलाकात होगी । अच्छा यह तो बताओं तुमने वह घर बेच दी। मैं जब भी वहां जाता था तुमलोगो की जानकारी देता रहता था। चाचाजी नहीं रहे तुमने फोन पर बताया था ।मुझे छुट्टी नहीं मिली आ न सके लेकिन चाची के गुजरने का मुझे तो बहुत दिनों बाद पता चला। तुमने फोन बदल ली तो फोन नम्बर तो दे देती ,इतना भी हक नहीं था मेरा। मुझे पता चला चाची के गुजरने के बाद तुमने घर बेच दी और कहीं चली गई पर गई कहां कोई नहीं बता सका। जिसने घर खरीदी थी उससे भी तेरे फोन का नम्बर मांगा लेकिन उसे भी तूने अपने नम्बर नहीं दिए थे ? चलो कोई बात नहीं यह बताओ शादी किससे की ?
शादी का नाम सुनते शोभा जैसे तन्द्रा से जागी ? वो तो नहीं की ? क्यों नहीं की का मतलब ? शोभा का ज़बाब था कोई मिला ही नहीं ( मन ही मन कहा तुम जैसा ) अब अपनी भी सुनाओगे या केवल मेरी ही बात करोगे ? पुनम कैसी है ? तुम करता कर रहे हो।भुवन ने कहा अच्छी है तुम्हारे बारे में उसे भी शिकायत है। कहती हैं अजीब दोस्त थी जिसने अपना फोन तक नहीं दिया। मैं बैंक में हूं हर तीन चार साल में तबादले होते रहते हैं। यहां बेटे के नामांकन के लिए आया हूं।मुस्कराते हुए कहा, अब तुम मिल गई तो नाम तो लिख ही लोगी ? शोभा भी मुस्करा दी। हां तो कब होगी एडमिशन ? शोभा ने कहा कल शनिवार है फिर सन्डे तुम्हारे सोमवार को बच्चे को लेकर आ जाओ। भुवन ने देखा कुछ लोग आकर लौट वोजा रहे हैं । कहां अच्छा तो मैं चलता हूं तुम अपना नम्बर दे दो। वह तो मुझे याद नहीं, परसों तो आ ही रहे हो ।भुवन ने कहा अच्छा रिंग कर दो मैं वेब कर लूंगा। सौरी भुवन फोन का ही मैं सोच रही थी उसमें बैलेंन्स के साथ बैटरी भी नही है।
भुवन जैसे दरवाजे पर आया उसे फोन की रिंग सुनाई दी, एक पल के लिए वह ठिठका तो क्या शोभा ने झूठ कहा, और अगर हां तो क्यों ?
शोभा घर आकर फूट-फूट कर रोई , सारी रात रोती रही । एकाएक उसे वह क्षण याद आ गया जब भुवन छुट्टी में घर आया था, वह खुश थी चलो अब दस दिन मजे में गुजरेंगे। भुवन ने कहा शोभा मुझे तुमसे एक सहायता चाहिए ।बोलो करोगी तभी बोलूंगा। शोभा ने कहा यह भी तुम्हें पहुंचनी पड़ेगी। अच्छा चलो बताओ करूंगी और सोलह आने करूंगी।
भुवन ने कहा शोभा मुझे एक लड़की से मुहब्बत हो गई है, वह मेरे जाति की नहीं है, तुम्हें मेरी पैरवी करनी होगी। शोभा को लगा पैर के नीचे जमीन ही नहीं । एक घड़ी के लिए जैसे आंखो के आगे अंधेरा छा गया हो। भुवन ने उसकी तन्द्रा भंग की कहा क्या हुआ किस सोच में पड़ गई। अरे बाबा कुछ नहीं सोचने लगी कैसे चाची से बात करूंगी ? अच्छा तुम बैठो मैं चाय लेकर आती हूं कहते हुए वह की-चेन में भाग गई। चाय तो एक बहाना था, उसे डर था कहीं आंसू ना निकल आए। चाय पीते समय भुवन लड़की के बारे में कहता रहा लेकिन शोभा का ध्यान कहीं और था। भुवन ने कहा अब मुझे चलना चाहिए, वर्षा में कैसे जाओगे, रूको मैं जाता लाती हूं। अब दोनों घर के गेट पर थे, भुवन ने कहा मुझे तो जाते थे दी खुद भींग रही हो अभी तक बच्चों वाली आदत नहीं गई। शोभा ने कहा तुम नहीं समझोगे भुवन बारिश में आंसू भी छुप जाते हैं।
सोमवार को भुवन बच्चे को लेकर विद्यालय पहुंचा। आफिस के चपरासी ने एक लिफाफा दिया । खोला तो उसमें शोभा का खत था। भुवन इंचार्ज को मैंने बता दिया है वह एडमिशन ले लेगीं । मैने रिजाइन कर दिया है।  यहां से जा रही हूं । कहां ? मुझे खुद पता नहीं ???

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