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विद्यालय की यादें

मैं विद्यालय में थी,काम करते यानि बच्चों को पढाते चार- पांच साल बीत गए। इस दरम्यान मैंने बोलना सीख लिया था।दो और बातें मेरे समझ लग गई थी।पहली मेरी नौकरी सरकारी है यानि मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता, सो मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है। दूसरी बात मैं मजबूर नहीं हूं मेरी नौकरी से मेरी रोटी नहीं हैजब चाहूं नौकरी छोड़ सकती हूं।इन बातों ने मेरी हिम्मत कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी थी। इससे मुझे फायदे और नुक्सान दोनों उठाने पड़े। फायदे थे किसी की कोई ग़लत बातों को बर्दाश्त नहीं करने पड़े। आदमी जब डरता है तभी वह गलत होते देखता है, वर्ना। हर इन्सान हमेशा से सही के साथ रहना चाहता है।
अब सुनाती हूं क्या होता था वहां। शिक्षा को शिक्षकों ने व्यपार बना रखा था।आप मेहनत करते हो टियूशन पढ़ाते हो अच्छी बात है,कुछ बच्चें जो पढ़ने में कमजोर है उनके जनक के पास पैसे हैं ,तो आप खुशी से पढ़ाए। मुझे परेशान उनके टियूशन वाले बच्चों को चोरी करवाने से होती थी। वो परीक्षा भवन में आकर उन बच्चों को डिक्टेट करवाते थे, जिसका असर उन बच्चों पर पड़ता था जो टियूशन नहीं पढ़ते थे। बच्चों में भी इस बात की चर्चा हुआ करती थी। अरे फलाना फस्ट करेगा वह फलाने सर से टियूशन पढता है। मैंने सोचा अब इसे रोकनी होगी। मैंने इसका विरोध किया। मेरी इनविजलेटर की डियूटी जहा रहती मैं वहां किसी और को आकर बताना तो रोक लिया लेकिन बाकी क्लास में चोरी करवाने का सिलसिला चलता रहा। मैंने प्रिसपल से अनुरोध किया सर कुछ तो करें,ल लेकिन मैं समझ चुकि थी, उनको स्कूल चलाने है और उनलोगो से उलझना उनके वश में नहीं है।
सरकारी विद्यालयों के प्रिसपल की स्थिति बड़ी दयनीय होती है। बेचारा भलामानुष शिक्षक से सुनता और अपने उपर वाले बॉस से भी डांट खाता। मैं अकेली और टियूशन वाले लोगों की संख्या चार थी, फिर भी मैं हार नहीं मानी।
बात तब उलझ गई जब उनकी चर्चा स्टुडेंट के 👂 तक पहुंची। पांच सात बच्चों ने प्रिसपल को घेरा और एक लिस्ट थमाई अगर इनकी डियूटी होगी तब हमलोग वायकॉट करेंगे। फिर क्या था प्रिसपल ने उनकी डियूटी लगाने बंद कर दिया।
मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मुझे पता था बच्चें मुझे बहुत प्यार करते हैं लेकिन यह पता न था इतना ज्यादा विश्वास है अपनी मैडम पर। मुझे खुद भी पता कहा था मेरे लिए एक बच्चे ऐसा करेंगे। मुझे तो एक स्ट्रीक्ट टीचर के रूप में ही जानते थे बच्चें। कहीं न कहीं उन्हें यह भान हो गया था मैं अपने लिए नहीं उनके लिए लड़ रही हूं।
टियूशन तो चलती रही परन्तु चोरी करवानी बंद हो गई।
बात यहीं समाप्त नहीं हुई, अब सबने मुझे सबक सिखाने की ठान ली....

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