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सफ़र भाग--२

गाड़ी रोकते ही वह आटर बोला रास्ते टूटे फ़ूटे है आप अभी उधर न जाए। इधर नक्सलियों का राज़ है। कुछ देर तक गाड़ी रूकी रही, समझ में कुछ नहीं आ रहा था।पतिदेव भी स्टेयरिंग पकड़ कर बैठे थे। एकाएक बोल पड़े, कैसा भी इलाका है हम किसी के दुश्मन नहीं है,आधे घंटे में पहुंच जाएंगे। यहां कहां रुके कोई होटल भी नहीं है, यह कहते हुए गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ें। कच्ची सड़क पर गाड़ी चली जा रही थी, थोड़ी दूर जाने पर रास्ते पर मोड़ आया। जिंदगी में भी कई मोड़ आते हैं थोड़े समय के लिए ही सही हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। कभी हमारे चूने रास्ते सही तो कभी गलत निकलते हैं।आज के जैसी सुविधाएं न थी, मोबाईल भी नहीं था वरना गुगल दा से रास्ते पूछ लेते। एक बार ग़लत रास्ते जाने के बाद अब पतिदेव ने भी किसी से पूछकर ही आगे बढ़ने की सोची। गाड़ी रोककर किसी अजनबी का इंतजार करते रहे हम। बच्चे सो गए,हम दोनों एक-दूसरे से मुह फुलाकर बैठे थे। कहा सोचा था हंसते गाते जाएंगे,एक यादगार सफ़र होगा और कहां यह मौन भरा सन्नाटा भरा राह।
शुक्र मुझे डर नहीं लग रहा था और न लगता अगर मौन तोड़ते पतिदेव की आवाज नहीं आती- आपने कुछ पहन तो नहीं रखें है, खोलकर रख लें।
एक महिला बिना कुछ पहने घर से निकलती है भला, इनके प्रश्न पर गुस्सा आ रहा था।ऐ अपने जैसा ही। हमें समझते हैं, कहीं जानी हो एक सर्ट उतारी एक चढ़ा ली,बस हों गई तैयारी।अरे रिश्तेदारों के घर जाने है गहने जेवर के बिना कैसे जाती। मैं गहने उतार रहीं थीं और सोचती जा रही थी, भगवान ने भी कितना अलग-अलग बनाए हैं पुरुष और स्त्री को।
लोग कहते हैं बोलते हुए थक जाता हूं, मेरे साथ कुछ अलग ही है मैं चुप रहते हुए थक जाती हूं ( जबसे बोलना शुरू किया, यानि बीस साल की उम्र में मैंने बोलना शुरू किया था )
मैंने ही चुप्पी तोड़ी अंधेरे बढ़ते जा रहे है, कोई आ नहीं रहा। पतिदेव ने दिल को ढांढस बंधाया अरे डरने की कोई बात नहीं, इतने में साईकिल पर एक आदमी दिखाई दिया। मैं खुशी में उछल पड़ी अरे पुछिए किधर हमें जाने है, मैं भूल ही गई थोड़ी देर पहले मुझे सुनने पड़े थे बगल के सीट पर बैठ कर स्टेयरिग न पकड़े। रास्ता का पता चलते गाड़ी आगे बढ़ी, थोड़ी दूर जाते ही...

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