चाची के साथ मेरी जिन्दगी कुछ ऐसे जुड़ी हुई है कि जब भी कलम उठाती हूं वह सामने आकर खड़ी हो जाती है। ऐसा नहीं है वह मेरी आदर्श है, बल्कि मुझे तो वह कतई पसंद नहीं है।
आपके जीवन में आने वाला हर शख्स आपको कुछ न कुछ दे जाता है। आप को कोई अच्छा लगता तो कभी आप किसी को अच्छे लगते हैं। चाची मुझे जितना पसंद करती थी, मुझे उनसे उतनी ही चिढ़ थी। मैं उन्हें पसन्द थी, कारण था मेरा चुप रहना , वह मुझे पसंद नहीं थी मुझे तो कारण वहीं उनका बहुत बोलना। अब सोचती हूं तो दो बातें मुझे समझ में आती है आप जिसे पसंद करते हो, कोई जरूरी नहीं उसे भी आप पसंद आते हो। दूसरी बात मैं ने सीखी, कभी भी किसी के साथ होना बेकार नहीं जाता। चाची के साथ रहकर मैंने सीखा जिससे नफरत करने वाले से भी मुहब्बत की जा सकती है, और जो मुहब्बत करें उससे भी नफरत हो सकती है। दरअसल इन्सान मुहब्बत या नफरत किसी इन्सान से कर ही नहीं सकता । इन्सान सामने वाले के व्यवहार और उसके चरित्र से नफ़रत या मुहब्बत करता है।
हां, तो चाची का इसबार जो आना हुआ उसका मकसद था चुड़ी खरीदना। सावन के आते ही हरी चुड़िया पहनने का रिवाज है सो चाची आ गई शहर । चाची को देखते मेरा माथा ठनका फिर मुझे इनको मार्केटिंग के लिए ले जानी होगी।
जो मैं ने सोचा था वहीं हुआ। मां का आदेश मिला थोड़ी देर पहले स्कूल के लिए चली जाना चाची को चुड़ी खरीदवा देना। तुम स्कूल चली जाना चाची अकेली घर आ जाएंगी। यह आदेश मिलते मुझे जी भर रोने का मन कर रहा था। समझ में नहीं आ रहा मैं ही क्यो हरबार चाची की खरीदारी करवाऊं?
जी करता बस एकबार इतनी हिम्मत आ जाएं मुझमें कि इनकार कर दूं। सोणन और होने में अंतर होता है, मैं कभी इतनी हिम्मत नहीं कर सकीं।
कल स्कूल जाने के समय देखा चाची एक दम लाल रंग की साड़ी में लिपटी, सिंदूर बिन्दी से सजी चलने को तैयार हैं। मां ने कहा चप्पल पहन लें, दुकानदार जान पहचान का है क्या कहेगा ? सोचेगा चप्पल नहीं है। मन तो कह रहा था कह दूं सच्चाई तो यही है, आपके चप्पल पहन कर जा रही है।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था एक बहरूपिया के साथ चल रही हूं। दुकान में पहुंच कर चाची ने फर्माईश किया-- हो बउआ समझ नीमन हरीअर रंग के चुड़ी देखाब। सावन में हरीअर चुड़ी पहीने के चाही। मेरे समझ में नहीं आ रहा था,सावन आने की खबर सुनाने की क्या आवश्यकता है? चाची चुड़ी देख रही थी, साईज देख रहीं थीं और मैं चिढ़ रहीं थीं। चुड़ी पसंद करने के बाद चाची ने कहा सोहाग लगा द। चुड़ी वाले ने एक चुड़ी उनके ओर बढ़ाया, यानि उसे पता था यह लवा दुवा मागन का तरीका था। सब्जी खरीदने पर हम भी तो मिर्ची धनिया डाल देने को कहते हैं।
चाची ने अपनापन दिखाते हुए पूछा -- नाम की हओ तोहर। जी असलम। कै भाई बहन हओ। जी चार भाई तीन बहन । बड़ा बढ़िया भरलपुरल घर नीक रहईअ।
मैं चाची की सुनाने से पहले बता दूं, हम सभी लड़कियों का यह पसंदीदा दुकान था। हमें कुछ भी खरीदने होते हम इसी दुकान में पहुंच जाते, कारण बाद में चाची से पता चलेगा, जैसे नाम पता चला उसका नाम असलम है।
हां तो अब पैसे देने थे, चाची को पैसे कम करवाने थे। इसके लिए उन्होंने बहुत से ताम झाम दिखाएं मसलन सब दुकान छोड़ कर इस में आना ( यानि धमकी कम नहीं करोगे तो अगली बार दूसरे दुकान में चली जाऊंगी ) उनके कहने पर कुछ कम कर भी दिया लेकिन चाची को अभी और कम करवाने थे, उन्होंने असलम के टूढी पकड़ कर कहा-- तोहर माय दाखिल हतियौ ,अब एतना छोड़ द।
मैंने पहली बार असलम की तरफ देखा-- वह एकदम शर्माया दीख रहा था। शरमाते हुए बोला ठीक है ले जाइए। चाची के चेहरे पर खुशी साफ़ झलक रही थी। मेरे समझ में आ गया था चाची इतना अपनापन क्यो दीखा रही थी, उन्हें पैसे जो कम करवाने थे।
मेरा तो दम घूट रहा था, सोच रही थी अब कैसे इसके दुकान में आऊंगी। मैं न भी जाऊं तो बाकी सभी लड़कियों तो यही आना चाहेंगी, चाची ने तो मेरे नाक ही कटवा दिए।
दुकान से निकल कर मैं स्कूल भागी। वहां जाकर मैं ने सबको बताया ( चाची के बारे में , नहीं कभी नहीं) सबको बताया श्रृंगार स्टोर वाले लड़के का नाम असलम है। सब मेरे तरफ़ ऐसे देख रही थी जैसे मैं ने पूछा हो उसका नाम ....
आपके जीवन में आने वाला हर शख्स आपको कुछ न कुछ दे जाता है। आप को कोई अच्छा लगता तो कभी आप किसी को अच्छे लगते हैं। चाची मुझे जितना पसंद करती थी, मुझे उनसे उतनी ही चिढ़ थी। मैं उन्हें पसन्द थी, कारण था मेरा चुप रहना , वह मुझे पसंद नहीं थी मुझे तो कारण वहीं उनका बहुत बोलना। अब सोचती हूं तो दो बातें मुझे समझ में आती है आप जिसे पसंद करते हो, कोई जरूरी नहीं उसे भी आप पसंद आते हो। दूसरी बात मैं ने सीखी, कभी भी किसी के साथ होना बेकार नहीं जाता। चाची के साथ रहकर मैंने सीखा जिससे नफरत करने वाले से भी मुहब्बत की जा सकती है, और जो मुहब्बत करें उससे भी नफरत हो सकती है। दरअसल इन्सान मुहब्बत या नफरत किसी इन्सान से कर ही नहीं सकता । इन्सान सामने वाले के व्यवहार और उसके चरित्र से नफ़रत या मुहब्बत करता है।
हां, तो चाची का इसबार जो आना हुआ उसका मकसद था चुड़ी खरीदना। सावन के आते ही हरी चुड़िया पहनने का रिवाज है सो चाची आ गई शहर । चाची को देखते मेरा माथा ठनका फिर मुझे इनको मार्केटिंग के लिए ले जानी होगी।
जो मैं ने सोचा था वहीं हुआ। मां का आदेश मिला थोड़ी देर पहले स्कूल के लिए चली जाना चाची को चुड़ी खरीदवा देना। तुम स्कूल चली जाना चाची अकेली घर आ जाएंगी। यह आदेश मिलते मुझे जी भर रोने का मन कर रहा था। समझ में नहीं आ रहा मैं ही क्यो हरबार चाची की खरीदारी करवाऊं?
जी करता बस एकबार इतनी हिम्मत आ जाएं मुझमें कि इनकार कर दूं। सोणन और होने में अंतर होता है, मैं कभी इतनी हिम्मत नहीं कर सकीं।
कल स्कूल जाने के समय देखा चाची एक दम लाल रंग की साड़ी में लिपटी, सिंदूर बिन्दी से सजी चलने को तैयार हैं। मां ने कहा चप्पल पहन लें, दुकानदार जान पहचान का है क्या कहेगा ? सोचेगा चप्पल नहीं है। मन तो कह रहा था कह दूं सच्चाई तो यही है, आपके चप्पल पहन कर जा रही है।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था एक बहरूपिया के साथ चल रही हूं। दुकान में पहुंच कर चाची ने फर्माईश किया-- हो बउआ समझ नीमन हरीअर रंग के चुड़ी देखाब। सावन में हरीअर चुड़ी पहीने के चाही। मेरे समझ में नहीं आ रहा था,सावन आने की खबर सुनाने की क्या आवश्यकता है? चाची चुड़ी देख रही थी, साईज देख रहीं थीं और मैं चिढ़ रहीं थीं। चुड़ी पसंद करने के बाद चाची ने कहा सोहाग लगा द। चुड़ी वाले ने एक चुड़ी उनके ओर बढ़ाया, यानि उसे पता था यह लवा दुवा मागन का तरीका था। सब्जी खरीदने पर हम भी तो मिर्ची धनिया डाल देने को कहते हैं।
चाची ने अपनापन दिखाते हुए पूछा -- नाम की हओ तोहर। जी असलम। कै भाई बहन हओ। जी चार भाई तीन बहन । बड़ा बढ़िया भरलपुरल घर नीक रहईअ।
मैं चाची की सुनाने से पहले बता दूं, हम सभी लड़कियों का यह पसंदीदा दुकान था। हमें कुछ भी खरीदने होते हम इसी दुकान में पहुंच जाते, कारण बाद में चाची से पता चलेगा, जैसे नाम पता चला उसका नाम असलम है।
हां तो अब पैसे देने थे, चाची को पैसे कम करवाने थे। इसके लिए उन्होंने बहुत से ताम झाम दिखाएं मसलन सब दुकान छोड़ कर इस में आना ( यानि धमकी कम नहीं करोगे तो अगली बार दूसरे दुकान में चली जाऊंगी ) उनके कहने पर कुछ कम कर भी दिया लेकिन चाची को अभी और कम करवाने थे, उन्होंने असलम के टूढी पकड़ कर कहा-- तोहर माय दाखिल हतियौ ,अब एतना छोड़ द।
मैंने पहली बार असलम की तरफ देखा-- वह एकदम शर्माया दीख रहा था। शरमाते हुए बोला ठीक है ले जाइए। चाची के चेहरे पर खुशी साफ़ झलक रही थी। मेरे समझ में आ गया था चाची इतना अपनापन क्यो दीखा रही थी, उन्हें पैसे जो कम करवाने थे।
मेरा तो दम घूट रहा था, सोच रही थी अब कैसे इसके दुकान में आऊंगी। मैं न भी जाऊं तो बाकी सभी लड़कियों तो यही आना चाहेंगी, चाची ने तो मेरे नाक ही कटवा दिए।
दुकान से निकल कर मैं स्कूल भागी। वहां जाकर मैं ने सबको बताया ( चाची के बारे में , नहीं कभी नहीं) सबको बताया श्रृंगार स्टोर वाले लड़के का नाम असलम है। सब मेरे तरफ़ ऐसे देख रही थी जैसे मैं ने पूछा हो उसका नाम ....
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