सबेरे नहा धोकर वहीं भोजन किया । हमें पुलिस के टेन्ट में लेकर गए। वहां दादीजी ने अपना और मेरा नाम पता लिखाई।
थोड़ी देर में लाउडस्पीकर में हमारे नाम पते पुकारे जाने लगे।सच बताऊं मैं अपना नाम कभी लाउडस्पीकर से सुना न था, सुनकर बहुत खुशी हो रही थी। रात आठ नौ बजे तक मैं अपने नाम को पुकारें जाने का आनंद लेती रही। बाल में तो यहां तट याद हो गया किसके नाम के बाद मेरा नाम आने वाला है। दरअसल हमारे जैसे और भी लोग थे जो अपनों से बिछड़ गए थे। मेला इतना विस्तार में फैला था कि हमारे परिवार वालों तक लाउडस्पीकर की आवाज पहुंची ही नहीं। रात होने पर वे सज्जन जिनके हम गेस्ट बनें थे आ गए । दादीजी में और उनमें कुछ बातें हुई ( शायद उन्होंने अपने पास चलने को कहा होगा) और। हम-दोनों फिर वापस आ गए।
आज मेले का तीसरा दिन था और लोग अपने घरों को लौटने लगें थे। लोगों का जाना ऐसा ही था जैसे भरें तालाब से एक लोटा पानी निकल जाए तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। आज दिनभर एनाउंस करने पर भी कोई नहीं आया। पुलिस ने दादीजी से पूछा मां जी आपको पता मालूम है आप कहे तो आपको घर पहुंचा दिया जाए।
आज सोचती हूं ऐसी हमारी पुलिस कैसे बदल गई, कितना विश्वास हुआ करता था जनता का पुलिस पर। दादीजी ने कहां छोड़ दो बेटा आखिर कब तक। हम दूसरों की रोटी पर पलते रहेंगे। उस सज्जन ने दादीजी को टोका था ऐसा क्यों कह रही है,आप मेरी मां जैसी है। हां लेकिन आज हम लोग भी यहां से निकल जायेंगे। देखिए शाम तक अगर आपके परिवार वालों का पता नहीं चलता तो आप लोग भी निकल जाइए।
उधर मेरी मां ने खाना पीना छोड़ रखा था । रोते रोते उनका बुरा हाल था। उधर से उनलोगो ने भी एनाउंस करवाया था लेकिन आवाज। हम तक नहीं पहुंच रहीं थीं। अब मेरे चचेरे भाई जो हमारे रक्षक बनकर गए थे, उनका फ़रमान आया चाची आखिर कब तक। हम यहां पड़े रहेंगे, घर चलते हैं , वहां चाचाजी को बताया जाएगा उनकी बहुत पहुंच है वह ढूंढ लेंगे। लाख समझाने पर भी मां समझने को तैयार न थीं।
इस तरह एक पुलिस जी की सहायता से हम दोनों दादी पोती घर पहुंचे। उधर हमारे घरवालों ने रात वहीं बिताए और दिन भर ढूंढते रहे, एनाउंस करवातें रहे। हारकर उन्हें भी गाड़ी पकड़नी पड़ी।वापस आकर मां ने जिद्द पकड़ ली, मैं बिना बच्ची को लिए घर नहीं जानेवाली। आपलोग वहां जाकर सब बताकर उसके पापा को भेजें मैं फिर मेले में जाकर उसे तलाश करूंगी। एक चाची को यह कह कर मां के पास छोड़ दिया गया, कहीं गम में कोई ग़लत कदम न उठा ले।
जब चाचाजी सपरिवार वापस आए तो मैंने ही दरवाजा खोला, मुझे देख उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे सबको छोड़कर स्टेशन भागे मेरी मां को लाने।
मां ने आते ही मुझे पकड़ लिया और रोने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं लग रहा था, आखिर क्यों रही है इतनी छोटी सी उम्र में कहां पता होता हैं कि आंसू खुशी के भी होते हैं, जब कोई अपना प्यारा बिछड़ कर मिलता है तो ऐसी आंसू खुशी जाहिर करने के लिए निकल पड़ते हैं।
याद है मुझे मां ने पिता जी से कैसे लिपटकर रोते हुए शिकायत की थी -- देखिए कैसे आपके शाप मुझे लग गए, मैं हंसते हुए गई और रोते हुए लौटीं
थोड़ी देर में लाउडस्पीकर में हमारे नाम पते पुकारे जाने लगे।सच बताऊं मैं अपना नाम कभी लाउडस्पीकर से सुना न था, सुनकर बहुत खुशी हो रही थी। रात आठ नौ बजे तक मैं अपने नाम को पुकारें जाने का आनंद लेती रही। बाल में तो यहां तट याद हो गया किसके नाम के बाद मेरा नाम आने वाला है। दरअसल हमारे जैसे और भी लोग थे जो अपनों से बिछड़ गए थे। मेला इतना विस्तार में फैला था कि हमारे परिवार वालों तक लाउडस्पीकर की आवाज पहुंची ही नहीं। रात होने पर वे सज्जन जिनके हम गेस्ट बनें थे आ गए । दादीजी में और उनमें कुछ बातें हुई ( शायद उन्होंने अपने पास चलने को कहा होगा) और। हम-दोनों फिर वापस आ गए।
आज मेले का तीसरा दिन था और लोग अपने घरों को लौटने लगें थे। लोगों का जाना ऐसा ही था जैसे भरें तालाब से एक लोटा पानी निकल जाए तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। आज दिनभर एनाउंस करने पर भी कोई नहीं आया। पुलिस ने दादीजी से पूछा मां जी आपको पता मालूम है आप कहे तो आपको घर पहुंचा दिया जाए।
आज सोचती हूं ऐसी हमारी पुलिस कैसे बदल गई, कितना विश्वास हुआ करता था जनता का पुलिस पर। दादीजी ने कहां छोड़ दो बेटा आखिर कब तक। हम दूसरों की रोटी पर पलते रहेंगे। उस सज्जन ने दादीजी को टोका था ऐसा क्यों कह रही है,आप मेरी मां जैसी है। हां लेकिन आज हम लोग भी यहां से निकल जायेंगे। देखिए शाम तक अगर आपके परिवार वालों का पता नहीं चलता तो आप लोग भी निकल जाइए।
उधर मेरी मां ने खाना पीना छोड़ रखा था । रोते रोते उनका बुरा हाल था। उधर से उनलोगो ने भी एनाउंस करवाया था लेकिन आवाज। हम तक नहीं पहुंच रहीं थीं। अब मेरे चचेरे भाई जो हमारे रक्षक बनकर गए थे, उनका फ़रमान आया चाची आखिर कब तक। हम यहां पड़े रहेंगे, घर चलते हैं , वहां चाचाजी को बताया जाएगा उनकी बहुत पहुंच है वह ढूंढ लेंगे। लाख समझाने पर भी मां समझने को तैयार न थीं।
इस तरह एक पुलिस जी की सहायता से हम दोनों दादी पोती घर पहुंचे। उधर हमारे घरवालों ने रात वहीं बिताए और दिन भर ढूंढते रहे, एनाउंस करवातें रहे। हारकर उन्हें भी गाड़ी पकड़नी पड़ी।वापस आकर मां ने जिद्द पकड़ ली, मैं बिना बच्ची को लिए घर नहीं जानेवाली। आपलोग वहां जाकर सब बताकर उसके पापा को भेजें मैं फिर मेले में जाकर उसे तलाश करूंगी। एक चाची को यह कह कर मां के पास छोड़ दिया गया, कहीं गम में कोई ग़लत कदम न उठा ले।
जब चाचाजी सपरिवार वापस आए तो मैंने ही दरवाजा खोला, मुझे देख उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे सबको छोड़कर स्टेशन भागे मेरी मां को लाने।
मां ने आते ही मुझे पकड़ लिया और रोने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं लग रहा था, आखिर क्यों रही है इतनी छोटी सी उम्र में कहां पता होता हैं कि आंसू खुशी के भी होते हैं, जब कोई अपना प्यारा बिछड़ कर मिलता है तो ऐसी आंसू खुशी जाहिर करने के लिए निकल पड़ते हैं।
याद है मुझे मां ने पिता जी से कैसे लिपटकर रोते हुए शिकायत की थी -- देखिए कैसे आपके शाप मुझे लग गए, मैं हंसते हुए गई और रोते हुए लौटीं
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