सुन रखा था चींटियां बड़ी मेहनती होती है।आज समझ में आया सब कुछ झूठ है मनगढ़ंत है। बाजार जाने के सिलसिले में घर से निकल स्कूटर पर बैठी। सफ़र और बाईक की खुले आकाश में हवा में के झोंको से टकराते गाड़ी भागी जा रही थी। घर से बाजार पहुंच कर गाड़ी से नीचे उतर कर क्या देखती हूं कि एक चींटी मेरे कपड़े पर बैठी है। चींटी क्या यह तो बड़ा सा काला कलूटा चींटा है। डरकर एक झटका दिया और वह सड़क पर।
मन में हजारों भाव आने लगे। क्याहै चींटियां भी देहचोर हो गई है। खुद से न चलकर लिफ्ट लेकर चलती है ? बाजार से क्या खरीदने आई है ? लगता है परिवार का मुखिया हैं, राशन की खरीदारी करने आई है। यह सोचते मन न जाने क्यों उदास हो गया। मुझे उसके घर लौटने की चिंता होने लगी।यह वापस कैसे जाएगी? घर नहीं पहुंची तो इसके बीबी और बच्चों का क्या होगा? उफ़ इसके तों सब अपने छूट गए। मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा ।भला इतनी भी डरने की क्या जरूरत थी।काट ही लेता तो मर नहीं जाती। खामखां बेचारे को फेंक दिया। ऐसा विचार आते मैं इधर-उधर देखने लगी। सोचा मिल जाए तो डिक्की में रखकर ले चलूंगी। पर न ऐसा होना था न हुआ। अगर वह चींटी मां होगी तो उसके बच्चे कितने परेशान होंगे।
मेरे दिलो-दिमाग में बस यहीं चल रहा था,भूल गई मुझे क्या खरीदनी थी।
एकाएक मेरी नज़र उसपर पड़ी। मेरे खुशी का ठिकाना नहीं। रूमाल से पकड़ा और झट से डिक्की में डाल लिया। कहीं बाहर निकल न जाए इस डर से मैंने अपनी खरीदारी को स्थकित कर घर लौटने का विचार किया।
घर आने पर जब लोगों को पता चला मैं क्यो खरीदारी किए वगैर लौट आई। फिर क्या था लोगों ने मेरे मजाक उड़ाया, मुझे पागल कहा ।
मन में हजारों भाव आने लगे। क्याहै चींटियां भी देहचोर हो गई है। खुद से न चलकर लिफ्ट लेकर चलती है ? बाजार से क्या खरीदने आई है ? लगता है परिवार का मुखिया हैं, राशन की खरीदारी करने आई है। यह सोचते मन न जाने क्यों उदास हो गया। मुझे उसके घर लौटने की चिंता होने लगी।यह वापस कैसे जाएगी? घर नहीं पहुंची तो इसके बीबी और बच्चों का क्या होगा? उफ़ इसके तों सब अपने छूट गए। मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा ।भला इतनी भी डरने की क्या जरूरत थी।काट ही लेता तो मर नहीं जाती। खामखां बेचारे को फेंक दिया। ऐसा विचार आते मैं इधर-उधर देखने लगी। सोचा मिल जाए तो डिक्की में रखकर ले चलूंगी। पर न ऐसा होना था न हुआ। अगर वह चींटी मां होगी तो उसके बच्चे कितने परेशान होंगे।
मेरे दिलो-दिमाग में बस यहीं चल रहा था,भूल गई मुझे क्या खरीदनी थी।
एकाएक मेरी नज़र उसपर पड़ी। मेरे खुशी का ठिकाना नहीं। रूमाल से पकड़ा और झट से डिक्की में डाल लिया। कहीं बाहर निकल न जाए इस डर से मैंने अपनी खरीदारी को स्थकित कर घर लौटने का विचार किया।
घर आने पर जब लोगों को पता चला मैं क्यो खरीदारी किए वगैर लौट आई। फिर क्या था लोगों ने मेरे मजाक उड़ाया, मुझे पागल कहा ।
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